
ऐल सैल्वाडौर का यात्रा-संस्मरण
– विजय विक्रान्त
बात सन 1967 की है। मुझे कैनेडा में आये हुये अभी दो वर्ष ही हुये थे और मैं मॉन्ट्रेयाल इन्जिनियरिंग कम्पनी (Monenco) मॉन्ट्रेयाल में डिज़ाइन इन्जिनियर के पद पर काम कर रहा था। वर्ष के शुरु में ही मुझे ऐल सैल्वाडौर की सब से बड़ी electrical distribution कम्पनी Compania de Alumbrado Electrico de San Salvador (caess) के सारे इलैक्ट्रिकल सिस्टम को upgrade करने के डिज़ाइन की ज़िम्मेवारी दी गई। यह assignment मैंने अक्तूबर के अन्त तक पूरी कर दी थी और सारी ड्राइंगें client को approve करने के लिये भेज दीं। दिसम्बर 1967 के शुरु में मुझे मेरे चीफ़ इन्जिनियर ने बुलाकर बताया कि client ने माँग की है कि यह सारा अपग्रेड (upgrade) मेरे निरीक्षण (supervision) में ही हो और इसके लिये मुझे फ़रवरी 1968 तक ऐल सैल्वाडौर पहुँचना है। मेरे चीफ़ ने मुझे यह भी बताया कि वहाँ दफ़तर में अधिकतर स्टाफ़ इंगलिश बोलते हैं लेकिन फ़ील्ड में, जिन लोगों से मेरा वास्ता पड़ेगा, उनकी भाषा में इंगलिश कम और स्पैनिश अधिक होगी।
क्योंकि मेरा वास्ता अधिक्तर फ़ील्ड में काम करने वाले स्टाफ़ से होगा, इसलिए स्पैनिश भाषा का जानना मेरे लिये अब एक चुनौती हो गई थी। चूँकि मेरे जाने में अभी थोड़ा समय था, सो उसका पूरा लाभ उठाने के लिये मैंने बर्लिट्ज़ लैण्गुएज स्कूल (Berlitz Language School) में शाम की क्लास में दाख़िला ले लिया। वहाँ छ: हफ़्ते की ट्रेनिंग के बाद मैं आम बोलचाल करने के थोड़ा लायक हो गया। इसी बीच कम्पनी ने मेरे वीज़ा और टिकट का भी प्रबन्ध कर दिया था। क्योंकि कैनेडा में फ़रवरी का महीना बहुत ठण्डा होता है, इसलिए विन्टर बूट्स और गरम टॉप कोट से लदकर मैं फ़रवरी के दूसरे सप्ताह में प्लेन में बैठकर मैक्सिको के लिये रवाना हुआ, जहाँ मुझे प्लेन बदलना था। मैक्सिको तक पहुँचते पहुँचते मौसम गरम हो गया था इसलिए मैंने टॉप कोट और स्कार्फ़ उतार कर हाथ में ले लिया। तीन घण्टे बाद मुझे ऐल साल्वाडौर की फ़्लाइट भी मिल गई।
प्लेन जब ऐल सैल्वाडौर में लैण्ड किया तो बाहर बहुत गरम था। कोट, स्कार्फ़ और ब्रीफ़ केस को हाथ में लिये मैं कस्टम और इमिग्रेशन की ओर बढ़ा। सब चैक आउट होने के बाद मैं बाहर गया जहाँ पर client का चीफ़ इन्जिनियर कार्ल हाइण्ड मेरा इन्तज़ार कर रहा था। एयरपोर्ट से कार्ल मुझे सैन सैल्वाडौर ले गया और वहाँ के ग्रैन होटल में चैकइन कराकर, यह कहकर कि वो कल सुबह मुझे लेने आयेगा, चला गया। होटल में मुझे कमरा नम्बर 902 मिला। जैसे ही मैं अपने कमरे में पहुँचा तो पता चला कि कोट और स्कार्फ़ तो एयरपोर्ट पर ही रह गये हैं। अगले दिन नाश्ते के बाद जब कार्ल मुझे लेने आया तो मैंने उसे सब किस्सा बताया। वो मुझे सीधा एयरपोर्ट ले गया और वहाँ पर मेरा सामान मिल गया। उसके बाद कार्ल मुझे एयरपोर्ट से सीधे caess के दफ़तर ले गया।
दफ़तर में कार्ल ने मुझे caess के प्रैज़िडैण्ट और सैनियर स्टाफ़ से परिचय कराने के बाद सुप्रिण्टैण्डैण्ट मानियुल ज़ावालैटा और इन्जिनियर फ़्रांसिस्को सालावारिय (फ़्रैंक) से मिलवाया। इसके बाद बाकी स्टाफ़ से और उन सभी लोगों से भी जो डायरैक्टली मेरे साथ काम करेंगे परिचय करवाया। प्रशासनिक रूप से (Administratively) इस असाइनमैंट (assignment) में इन्जिनियर फ़्रैंक मेरा कॉन्टेक्ट (contact) होने के साथ साथ बाकी सारे काम करने वालों का बौस भी होगा। फ़्रैंक स्पैनिश के साथ साथ अच्छी अंग्रेज़ी भी बोल लेता था। अगले दिन से काम शुरू करना था और सब से पहले हमें agua caliente switchyard से काम शुरु करना था। अब तक शाम हो चली थी और फ़्रैंक मुझे होटल में छोड़ कर अगले दिन आठ बजे पिकअप करने को कहकर चला गया। रात को डिनर के लिये जब मैं रैस्टोरैण्ट में गया और वहाँ की maitre de मारतीता (Martha) ने मेरे आगे मैनु रखा तो मैंने देखा कि उसमें सारी डिशें मीट की हैं। अब मैं ठहरा शाकाहारी; क्या आर्डर करूँ? न जाने क्या सोच कर हैम्बर्गर और फ़्रैंच फ़्राई का आर्डर कर दिया। खाना जब आया तो हैम्बर्गर गले के नीचे न उतरे। जैसे-तैसे करके मीट के पीस को एक तरफ़ करके बाकी चीज़ों से पेट भर लिया। मुझे नहीं मालूम कि Martha की पैनी नज़र देख रही थीं कि मैंने कुछ नहीं खाया है।
अगले दिन नाशता करके नीचे आया जहाँ फ़्रैंक लॉबी में मेरा इन्तज़ार कर रहा था। उसके साथ हम सीधे agua caliente switchyard पहुँच गये जहाँ मैंने सारे स्टाफ़ को अपने साथ लाई हुई ड्राइंग दिखा कर, समझा कर उनका काम बता दिया। जिस जिस सामान की ज़रूरत थी वो उसको जुटाने में लग गये ताकि अगले दिन पूरे ज़ोर शोर से काम शुरु किया जाये। इसी बीच मैंने महसूस किया कि जो विन्टर बूट मैं पहने हुये था वो वहाँ की गरमी के कारण बहुत ही कष्टदायक (uncomfortable) थे। मैंने यह बात फ़्रैंक को बताई और कहा कि मुझे नया जूता ख़रीदना है। शाम को काम ख़तम करके हम जूता ख़रीदने जब एक दुकान पर पहुँचे तो मुझे देखते ही दुकानदार बोला कि सैन्यॉर (Señor) परसों ही तो आप आये थे और नया जूता ले गये थे। उसका क्या हुआ? फ़्रैंक के बताने पर कि मुझे अभी इस देश में आये हुये केवल एक ही दिन हुआ है, दुकानदार थोड़ा चकरा सा गया। बातों बातों मैं उसने जब मुझ में रुचि दिख़ाई और मेरे बारे में जानना चाहा तो मैंने बताया कि मैं यहाँ आया तो कैनेडा से हूँ मगर पैदाइशी भारतीय हूँ। उसके आगे पूछने पर मैंने बताया कि मैं ग्रैन होटल में ठहरा हुआ हूँ।
अगले दिन शनिवार था और फ़्रैंक मुझसे पूछने लगा कि मेरा क्या प्रोग्राम है। इससे पहले कि मैं उसको जवाब देता, उसकी वॉकी-टॉकी (walkie talkie) पर सुप्रिण्टैण्डैण्ट मानियुल ज़ावालैटा का मैसेज (message) आया। उसने कहा कि अगले दिन वो मुझे मेरे होटल से 11 बजे पिकअप करेगा और उसके परिवार सहित हम सैन सैल्वाडौर की ऐल टँको बीच (el tunco beach) पर जायेंगे। ठीक समय पर अगले दिन मानियुल ने मुझे पिकअप किया। मानियुल ने मुझे अपने परिवार के सब लोगों से मिलवाया। हालांकि भाषा एक बाधा थी फ़िर भी सब बड़े जोश से मिले। एक तरफ़ मानियुल के परिवार के लोग बीच में गोता लगाने में मस्त थे और दूसरी तरफ़ हम दोनों बीच की रेत पर अकेले लेटे थे। मानियुल की अंग्रज़ी बहुत अच्छी नहीं थी और उधर मेरी स्पैनिश भी ऐसी ही थी। हम दोनों कोई चार पाँच घण्टे बीच पर अकेले लेटे पड़े रहे। आप विश्वास नहीं करेंगे लेकिन इस दौरान हम दोनों ने टूटी फूटी भाषा में, रेत पर लाईनें ख़ेंच कर, आंखों से और अपने हाथों को ऊपर नीचे करके बच्चों की, परिवार की, कैनेडा और ऐल सैल्वाडौर के जीवन के रहन-सहन की और सारी दुनिया भर की बातें कर लीं। समय बहुत अच्छा कटा और शाम होते होते मानियुल मुझे होटल छोड़ गया।
जिस काम के लिये मैं आया था वो काम अब पूरी तेज़ी से चल रहा था। काम करने वाले इलेक्ट्रिशन, टैकनिशन और इन्जिनियर पूरी लगन से काम कर रहे थे। एक switchyard पर काम ख़तम होने के बाद टीम का प्रोग्राम अगले switchyard पर जाने का था। इधर अपनी स्पैनिश को निखारने के लिये जब कभी भी मैं इन फ़ील्ड वाले लोगों से स्पैनिश में बात करना चाहता था तो ये लोग अंग्रेज़ी में जवाब देने की कोशिश करते थे। मुझे तो अपनी स्पैनिश प्रैक्टिस करने का मौका नहीं मिला लेकिन अपनी अंग्रेज़ी सुधारने का इससे बढ़िया और कौन सा मौका इन सबको मिलेगा, और सारे स्टाफ़ वाले इस अवसर का पूरा फ़ायदा उठाना चाहते थे।
इधर रैस्टोरैण्ट का मांसाहारी (non-veg) खाना मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और Martha इससे भली-भांति परिचित थी। मेरे पास आकर बार-बार पूछती कि मुझे क्या पसन्द है। मैं उसे बताने की कोशिश कर रहा था कि मुझे मांसहारी भोजन पसन्द नहीं है। मेरा यह कहना Martha को बहुत अजीब लग रहा था कि मैं मांस नहीं खाता। अगले दिन लँच पर अचानक होटल का अमरीकन चीफ़ शैफ़ साइमन मेरी टेबल पर आया और अंग्रेज़ी में पूछा कि मुझे क्या पसन्द है। मेरे बताने पर वो हँसा कि बस इतनी सी बात है। उस वार्तालाप के तुरंत बाद मेरे लिये लँच और डिनर पर sandwich, तॉर्तियास, राजमाँ, चावल और अन्य शाकाहारी भोजन आने लगा। लगता था कि खाने की जो समस्या थी वो अब दूर हो गई है।
मेरा हिन्दुस्तानी चेहरा और उस पर छोटी-छोटी मूँछे देखकर कभी-कभी वहाँ लोगों को शक हो जाता था कि मैं या तो लोकल सैल्वेडोरियन हूँ या फ़िर मैक्सिकन हूं। एक दिन मैं लॉबी में बैठा lucha libre (freestyle wrestling) टीवी प्रोग्राम देख रहा था जब उसी होटल में ठहरे एक अमरीकन गैस्ट ने आकर मुझसे स्पैनिश में बात करनी शुरू कर दी। क्योंकि मुझे थोड़ी भाषा तो आती थी, उसको मैंने Señor, hablo un poquito de español (Sir, I speak a little spanish) कह कर जवाब दिया। वो समझ गया और अँग्रेज़ी में बात करने लगा। थोड़ी देर बाद हम बहुत घुलमिल गये और अच्छे मित्र भी बन गये। समय-समय पर अब हम दोनों इकठ्ठे खाना खाने के साथ-साथ अंग्रेज़ी और स्पैनिश, दोनों भाषाओं में बातें करते थे।
क्योंकि मुझे तो होटल में महीनों ठहरना था इसलिए होटल के अमरीकन मैनेजर से भी अच्छी जान पहचान हो गई थी। ख़ाने के बाद ऐसे ही एक बार मैं लॉबी में घूम रहा था कि होटल के पी.ए सिस्टम (PA system) पर मेरा नाम announce हुआ कि मेरा फ़ोन है। मेरे यहाँ रहने का तो सिवाये दफ़्तर के कुछ लोगों को छोड़ कर किसी को पता नहीं था, फिर अब कौन मुझे ग्रैन होटल में इस समय फ़ोन करेगा। मैंने उस announcement को ignore कर दिया। कोई दो मिनट बाद होटल का मैनजर मेरे पास आया और कहने लगा कि आपका फ़ोन है। मैंने जब फ़ोन लिया तो दूसरी तरफ़ कोई सुरेन्द्र अरोड़ा नाम के सज्जन थे। उन्होंने बताया कि उनको मेरा पता शहर की एक जूते वाली दुकान से मिला था। वो भी भारत से हैं और यदि मेरे पास टाइम है तो वो अभी इस समय मुझसे मिलने को बहुत उत्सुक हैं।
मेरे हाँ करने पर कोई बीस मिनट बाद मैंने एक सज्जन को लॉबी में फ़्रण्ट डैस्क पर receptionist से बात करते देखा। उसे देखते ही मैंने उसे तुरन्त पहचान लिया, वहाँ गया और उन से हाथ मिलाया। हम एक टेबल पर बैठ गये और मैंने चाय मँगाई। अब बातों का सिलसिला जारी हुआ तो सुरेन्द्र ने बताया कि वो भारत में हुशियारपुर से है और ऐल सैल्वाडौर में बतौर एक टीचर काम करता है और यहीं की एक लोकल लड़की से शादी भी कर ली है। उसने आगे बताया कि इस देश में केवल दो ही हिन्दुस्तानी हैं। एक सुरेन्द्र और दूसरे एक नवाब साहब जिन्होंने इंगलैण्ड में ऐल सैल्वाडौर की एक बहुत बड़ी अमीर विधवा से शादी कर ली है। उस महिला की देश के सात अमीर परिवारों में गिनती आती है। मेरे और मेरे पते के बारे में सुरेन्द्र को उस जूते वाले से मालूम हुआ था जिस का ज़िक्र मैं पहले कर चुका हूँ।
चूंकि मेरे पास सीधे संचार (direct communication) का कोई साधन नहीं था इसलिए कभी कभी सुरेन्द्र मुझे शाम को होटल में मिलने आ जाता था। एक शाम सुरेन्द्र जब मुझे मिलने आया और बोला कि नवाब साहब ने हम दोनों को परसों खाने पर बुलाया है और मैं तुम्हें परसों शाम को ठीक पाँच बजे पिकअप कर लूँगा। मेरे पूछने पर कि माजरा क्या है तो उसने बताया कि जैसे ही उसने मेरे यहाँ होने का ज़िक्र नवाब साहब से किया वो तो ख़ुशी के मारे झूम गये और मुझसे मिलने को बेताब हो गये।
ख़ैर, निश्चित समय पर सुरेन्द्र मुझे लेने आया। जैसे ही सुरेन्द्र की कार नवाब साहब की कोठी में पहुँची वो फ़ौरन बाहर आये और बहुत प्यार और सत्कार से हमारा स्वागत किया। क्या आलीशान महल था उनका। इतने में नवाब साहब की बेग़म भी आ गयीं। पहले बातों और ड्रिंक्स का सिलसिला चला, फिर उसके बाद खाना हुआ। ऐसा लाजवाब खाना और service देख कर बहुत मज़ा आया। फिर नवाब साहब ने अपनी बेग़म के घर का टूर दिया। मकान देखकर आँखें खुली की खुली रह गयीं। बेग़म के पहले पति से एक लड़का और एक लड़की थे। दोनों की शादी हो गयी थी लेकिन उनके बेटे की पत्नी की कार हादसे (accident) में मृत्यु हो गई थी। जहाँ तक मुझे याद है उनके बेटे के सात बच्चे थे और सातों बच्चों के लिये अपनी-अपनी individual governess थी।
खाने के बाद बातचीत और गप्पों का दौर चला। अधिकतर बातें भारत के बारे में या फिर कैनेडा के तौर-तरीके और रहने-सहने के बारे में थीं। नवाब साहब के बात करने के सलीके और लखनवी अंदाज़ ने तो गुफ़्तगू में चार चाँद लगा दिये। अपने बारे में नवाब साहब ने बताया कि वो लखनऊ से हैं और उनको भारत छोड़ इँग्लैण्ड में बसे काफ़ी अरसा हो गया था। अपनी पहली बीवी के इन्तक़ाल के बाद उन्होंने ऐल सैल्वाडौर की इस अमीर महिला से शादी कर ली थी। जब हम चलने लगे तो नवाब साहब ने कैनेडा में भारत के राजदूत जनरल चौधरी के लिये कुछ तोहफ़ा दिया जो यहाँ आकर मैं स्वयं जनरल चौधरी को देने औटवा (Ottawa) गया।
वापस जाने से पहले मैं ऐल साल्वाडौर के कुछ souvenir ख़रीदना चाहता था। ऐसे ही एक दिन सुरेन्द्र से मैंने साल्वाडौर के कुछ artifact खरीदने में मेरी मदद करने को कहा। सुरेन्द्र के यह कहने पर कि “कल मेरा स्कूल से छुट्टी का दिन (offday) है और मैं तुम्हें दो बजे पिकअप करुँगा और हम शॉपिंग करने चलेंगे”, हम ने अगले दिन का प्रोग्राम बना लिया। अगले दिन ठीक दो बजे मैं जैकट और टाई लगाकर लॉबी में खड़ा सुरेन्द्र का इंतज़ार कर रहा था। मुझे देखते ही वो फ़ौरन बोला कि ऊपर जाओ और आम (ordinary) पैण्ट शर्ट में आओ। मेरे पूछने पर उसने बताया कि इन कपड़ों में तुम्हें देखकर हर चीज़ के दाम दुगने तिगने हो जायेंगे। यह सुनकर मैं ऊपर अपने कमरे में गया और कपड़े बदल कर आ गया। मार्केट में जाकर देखा कि सुरेन्द्र ने ठीक कहा था। उसी चीज़ के जो दाम हम ने दिये थे उसी item के दूसरे टूरिस्टों से दुकानदारों ने दो-तीन गुना दाम लिये।
काम अपनी तेज़ी से हो रहा था। Agua calente के बाद और जितने भी switchyard थे उन का upgrade भी ठीक चल रहा था। समय-समय पर मुझे caess के President को रिपोर्ट देने के लिये दफ़्तर जाना पड़ता था। Client भी काम की प्रॉग्रैस से बहुत ख़ुश थे। ग्रैन होटल तो मेरे लिये अब एक दूसरा घर-सा बन गया था। शाम को होटल के नाईट क्लब में बहुत अच्छे शो भी देखने को मिलते थे। कभी-कभी अकेला मटरगश्ती के लिये भी निकल जाता था। आसपास बहुत अधिक देखने को तो नहीं था फिर भी इस बहाने थोड़ी सैर ही हो जाती थी।
ऐसे ही एक दिन जब मैं caess के दफ़तर पहुँचा तो वहाँ पर कार्ल हाइण्ड ने मेरा परिचय मॉन्ट्रेयाल से आये एक सज्जन टॉम पियर्सन से कराया। टॉम को, जो मॉन्ट्रेयाल में वित्त विभाग (finance department) में था, मैं पहली बार मिल रहा था। बातचीत के दौरान मालूम पड़ा कि टॉम भी ग्रैन होटल में कमरा नम्बर 705 में ठहरा हुआ है। बहुत जल्दी ही टॉम से काफ़ी घनिष्टता हो गई और रैस्टोरैण्ट में साथ देने वाला एक साथी मिल गया। औडिट (Audit) के सिलसिले में टॉम के ऐल साल्वाडौर के चक्कर लगते रहते थे और वो वहाँ के रास्तों से और स्पैनिश भाषा से भी भली भाँति परिचित था।
शुक्रवार की एक शाम को मैं, टॉम, फ़्रैंक और caess के कुछ और लोग खाना खाने के बाद होटल के नाईट क्लब में बैठे बीयर पी रहे थे और स्टेज पर हो रहे शो का मज़ा ले रहे थे। शो ख़तम होने के बाद जैसे ही हम अपने अपने कमरों में जा रहे थे टॉम कहने लगा कि विजय क्यों न हम कल आवारागर्दी के लिये शहर से दूर ऐल साल्वाडौर के उन इलाकों में जायें जहाँ बड़े शहर सैन साल्वाडौर के इलावा बहुत कुछ देखने को मिलेगा। उसने यह भी बताया कि उस के पास कम्पनी की कार है और वो ख़ुद ड्राइव करेगा। अगले दिन शनिवार को नौ बजे जाने का प्रोग्राम पक्का हो गया।
अगले दिन नाश्ते के बाद, गर्मियों के हल्के कपड़े पहने हम दोनों सफ़र के लिये निकल पड़े। रास्ते में रुकते रुकाते और caess के छोटे-छोटे rural distribution centre में विज़िट करते हुये हम आगे बढ़े चले जा रहे थे। कोई एक बजे जब भूख लगी तो टॉम ने एक फेरी वाली (street vendor), जो मक्की से बने तॉर्तिया और red fried beans (राजमाँ) बेच रही थी, की दुकान के आगे गाड़ी रोकी। हम वहीं पर पड़ी कुछ कुर्सियों पर बैठ कर खाने में मस्त हो गये। इसी बीच मैंने देखा कि वहीं पर तॉर्तियों के साथ साथ ब्रैड पकौड़े जैसा पीले रँग का प्लेट में कुछ रखा हुआ है। कौतहूल जागा कि यह अवश्य शाकाहारी डिश होगी। मेरे पूछने पर टॉम ने मुस्कराकर कहा कि क्यों नहीं इसे उठाकर ख़ुद देख लेते कि क्या है। उसके कहने पर जैसे ही मैंने उस डिश को अपने फ़ॉर्क से उठाना चाहा, वो फिसल कर वापस प्लेट में गिर पड़ी। दोबारा उठाने की कोशिश की तो फिर वही फिसलन। कौतहूल जागा कि यह आख़िर क्या बला है। पूछने पर टॉम ने हँसते हुये बताया कि यह fried oxtongue है और यह यहाँ की delicacy है। अब मैं ठहरा शाकाहरी। क्या कहूँ। बस बात को आगे न बढ़ाकर वहीं समाप्त कर दिया।
जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे, चारों ओर बहुत सुन्दर हरियाली के साथ-साथ देश की गरीबी भी सामने नज़र आ रही थी। कहाँ सैन साल्वाडौर में बड़े शहर की रौनकें, आलीशान कोठियाँ, रईसी ठाठ-बाठ और कहाँ उसी देश में इतनी ज़्यादा ग़रीबी। चारों ओर ग़रीबी से स्ट्रगल देखने को मिल रही थी। ऐसा लगता था जैसे हर कोई अपने पेट की भूख़ मिटाने में लगा हुआ था।
मेरे पूछने पर कि यहाँ पर कोई बिजली घर हैं या नहीं टॉम कुछ नहीं बोला, बस गाड़ी चलाता रहा। एकाएक उसने एक गाँव में एक हाइड्रो स्टेशन (hydro station) के पास जाकर कार रोक दी और मुझे उतरने को कहा। जैसे ही मैं कार से उतरा, सारा वातावरण बहुत बुरी बदबू से भरा हुआ पाया। यहाँ ठीक तरह से साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था। इतने में हमें देखकर वहाँ का operator बाहर आया और beunos tardes (good afternoon) कहकर हमारा स्वागत किया। हमारे भी beunos tardes उत्तर देने पर उसने एक गहरी साँस ली और बोला buen tiempo (nice weather). इस वातावरण में जैसे ही मैंने पास के एक बिजली के खम्बे का सहारा लेना चाहा वो operator एक दम बोल पड़ा “Por favor, no se apoye en el poste Señor. Es peligroso”. (Please don’t lean on the pole sir. It is dangerous). यह सुन टॉम ने मुझे फ़ौरन खम्बे से दूर हो जाने को कहा।
अपने प्रोफ़ैशनल कैरियर में मैंने भिन्न-भिन्न प्रकार के पावर स्टेशनों को विज़िट ही नहीं किया, बल्कि उनके डिज़ाइन में अपनी ज़िन्दगी गुज़ार दी, परन्तु यह जगह मुझे बिल्कुल निराली लगी। एक बार बदबू को भूलकर इस हाइड्रो स्टेशन के बारे में अधिक जानने की बहुत उत्सुकता हो गयी। पता चला कि आसपास के सारे एरिया के सारे रॉ सीवर (raw sewer) को एक जगह इकठ्ठा किया जाता है। उसके बाद उसे penstock से टर्बाइन में भेजा जाता है जहाँ पर लगा जैनरेटर बिजली पैदा करता है। रॉ सीवर का टर्बाइन में churn होने के बाद क्या हश्र होगा आपकी imagination पर छोड़ता हूँ। इतना ज़रूर देखने को मिला कि बिजली पैदा करके जब पानी को नाले में (tail race) बहाया तो वहाँ धुएँ के बहुत गहरे बादल थे। यह धुआँ इतना corrosive था कि आसपास के ख़म्बों पर जितने भी कनैक्टर लगे हुये थे वो corrode होकर कभी भी गिर सकते थे और यही कारण था जब वहाँ के operator ने मुझे खम्बे से दूर रहने को कहा था।
शाम भी हो चली थी। आज के इस कभी न भूलने वाले सफ़र में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली, बहुत ज़बरदस्त ग़रीबी और रॉ सीवर से कैसे बिजली पैदा की जाती है, इन्हीं सब यादों को मन में संजोने के बाद टॉम ने होटल की तरफ़ गाड़ी का मुँह मोड़ लिया।










ताज़ूमाल मायन खण्डर (Tazumal Mayan Ruin)
एक शाम, मुझे होटल में छोड़ने के बाद, फ़्रैंक कहने लगा कि अगले दिन लोकल छुट्टी है और हम दोनों ऐल साल्वाडौर के ताज़ूमाल मायन खण्डर (Tazumal Mayan Ruin) देखने चलेंगे और वो मुझे 10 बजे पिकअप करेगा।
अगले दिन फ़्रैंक के साथ, सैन साल्वाडौर से 55 किलोमीटर दूर, ताज़ूमाल पार्क में हम पहुँच गये। जैसे ही पार्क के अन्दर पहुँचे मुझे लगा कि जैसे हम भारत के प्रमुख बौद्ध एवम हिन्दू तीर्थस्थल सारनाथ में पहुँच गये हैं। ऐसा इसलिए कि कैनेडा आने से पहले मैं वाराणशी में पोस्टेड था और वहाँ से सारनाथ के ट्रिप अक्सर लगते रहते थे। आज इस बात को कोई 60 साल से ऊपर हो गये हैं लेकिन मेरी वो प्रतिक्रिया अभी भी मेरे ज़हन में वैसी ही ताज़ी है।
मायन सभ्यता के खण्डरों की संरक्षण के लिये, सैन्ट्रल अमरीका में, ताज़ूमाल देश का सबसे पहला और सबसे पुराना अच्छी तरह से संरक्षित (well preserved) पुरातात्त्विक (archaeological) पार्क है। छ: वर्ग मील में बसे इस ताज़ूमाल पार्क में पिरामिड, कार्यशाला (workshops) तथा म्युज़ियम भी देखने को मिले।
अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता के महत्वपूर्ण केन्द्र मैक्सिको, ग्वाटेमाला, होंडुरास एवं ऐल सैल्वाड़ोर में थे। माया सभ्यता मैक्सिको की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी। इस सभ्यता का आरम्भ 1500 ई० पू० में हुआ। यह सभ्यता 300 ई० से 900 ई० के दौरान अपनी उन्नति के शिखर पर पहुंची। यद्यपि माया सभ्यता का अंत 16 वी शताब्दी में हुआ किन्तु इसका पतन 11 वी शताब्दी से आरम्भ हो गया था।
1940 में प्रकाशित, श्री चमनलाल कृत हिन्दू अमेरिका पुस्तक में माया सभ्यता तथा भारतीय सभ्यता की पारस्परिक निकटस्थ समानताएं वर्णित हैं। स्वयं ‘माया’ शब्द ही भारतीय हैं। मैक्सिको में श्री गणेश जी तथा सूर्यदेव की प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। मैक्सिको वासियों के पारम्परिक गीतों में अपनी नव-विवाहिता कन्या को वर-पक्ष के घर भेजते समय माँ द्वारा प्रकट किए गये उद्गार भारतीय विचारों के अत्यधिक समरूप हैं। मुखाकृति की दृष्टि से प्राचीन मैक्सिको के लोग उसी जाति के प्रतीत होते हैं जिस जाति के भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के निवासी हैं। प्राचीन भारतीय शब्दावली में, अमरीकी महाद्वीपों वाला पश्चिमी गोलार्द्ध पाताल कहलाता था। यह हो सकता है कि कि बाली को पाताल क्षेत्र की ओर खदेड़ने का सन्दर्भ ऐतिहासिक रूप में उसकी पराजय तथा बाली द्वीप पर बने द्वीपस्थ दुर्ग से हटकर सुदूर मैक्सिको में जा बसने का द्योतक हो।

Tazumal Ruins

Tazumal Ruins

Tazumal Ruins
ताज़ूमाल खण्डरों में घूमते समय एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि मैं भारत से बाहर हूँ। आसपास घूमते हुये लोकल भी भारतीय जैसे लगते थे। जब तक वो अपना मूँह न खोले, आपको ऐसा लगेगा कि यह सब तो अपने ही लोग हैं। हालांकि उतराई, चढ़ाई काफ़ी थी फ़िर भी वहाँ के माहौल में बहुत अपनापन लग रहा था। हम दोनों काफ़ी समय तक घूमते रहे और शाम तक फ़्रैंक मुझे होटल छोड़ गया।
सैरो वर्दे नैशनल पार्क (Cerro Verde National Park).
इसी बीच, बरमेहा (Bermeja) switchyard में कुछ समस्या के कारण अगला सप्ताह बहुत व्यस्त निकला। हालात के काबू में आने पर थोड़ी चैन की साँस ली। शुक्रवार का दिन था। काम समाप्त करके फ़्रैंक मुझे होटल छोड़ने के लिये तैयार था। रास्ते में कहने लगा कि विजय, पिछला सप्ताह बहुत तनावपूर्ण (stressful) गुज़रा है, क्यों न कल हम यहाँ के सैरो वर्दे नैशनल पार्क चलें। वहाँ बहुत विश्राम (relaxation) मिलेगा। मेरे हाँ कहने पर उसने अगले दिन 10 बजे मुझे होटल से पिकअप करने को कहा। अगले दिन ठीक समय पर फ़्रैंक मुझे लेने आ गया। उसके हाथ में एक बैग भी था। मेरे पूछने पर कि इस में क्या है, उसमे बताया कि बैग में कुछ सैण्डविच और ड्रिंक हैं।
ऐल सैल्वाडौर अपने ज्वालामुखी पर्वत और ज्वालामुखी क्रेटर के लिये बहुत प्रसिद्ध है और यह सब देखने के लिये सन 1955 में सैन सैल्वाडौर से 77 किलोमीटर दूर सैरो वर्दे नैशनल पार्क (Cerro Verde National Park) बनाया गया था और हम दोनों इसी पार्क में जा रहे थे।
इस पार्क में अपने किस्म की तीन अद्वितीय (unique) ज्वालामुखी (volacones) हैं और इनके नाम इज़ाल्को (Izalco), सैन्टा ऐना (Santa Anna) तथा सैरो वर्दे (Cerro Verde) हैं। इज़िल्को ज्वालामुखी ‘lighthouse of the pacific’ के नाम से भी जानी जाती है। यह दुनिया की सब से तरुण (youngest) ज्वालामुखी है। इसका उदभेदन (eruption) 1966 में हुआ था। यह देश की अनुसंकेत (iconic symbol) है जिसकी तस्वीर सैल्वैडोर बैंक के 10 colon के नोट पर और डाक टिकट (postal stamps) पर है।
1966 में जब इसकी कोन (cone) से लावा निकल रहा था तो वो रात के समय प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) से दिखाई दे रहा था। इसीलिए इज़ाल्को ज्वालामुखी का नाम lighthouse of the pacific (स्पैनिश में Faro del Pacifico) पड़ा।
अब याद आ रहा है जब वहाँ चलते हुए, सडक़ के किनारे, काले रँग की मिट्टी का बहुत लम्बा ढ़ेर सड़क के साथ साथ नज़र आ रहा था। पूछने पर पता चला कि यह इज़ाल्को उदभेदन (eruption) का लावा है। ऐसा लगता है कि सड़क के किनारे जहाँ-जहाँ वो काले रँग का मीलों लम्बा पत्थर जैसा ढ़ेर था, उसी रास्ते लावा बहा होगा।
इज़ाल्को की तीन तस्वीरें नीचे हैं।

Izalco Volcano El Salvador

Izalco Volcano Salvador

Izalco Volcano
1968 में ऐलसाल्वाडौर की पूरी आबादी 3.5 मिल्यन (35 लाख) थी। इतने छोटे से देश में इतना सब कुछ देखने को मिलेगा कभी सोचा भी नहीं था।
अब तक सारे Switchyards के अपग्रेड (upgrade) का काम भी पूरा हो गया था और मेरे जाने का समय भी आ गया था। आखिरी सप्ताह overall inspection में लगा। जहाँ-जहाँ अपग्रेड (upgrade) हुआ था जाकर देखा कि सब काम ठीक हुआ है, जो-जो नये instruments लगाये थे उनको टैस्ट किया कि वो ठीक काम कर रहे हैं। उसके बाद देखा कि सारी ड्राइंग भी पूरी तरह से markup हो गई हैं।
आख़िरी दिन दफ़्तर में सब को bye bye कर के होटल आया। उस रात मैंने और फ़्रैंक नें इकठ्ठे खाना खाया। चलने से पहले उसने मुझे EL-XUC नाम का लोक गीतों का वायनल रिकॉर्ड दिया जो आज भी मेरे पास है। अगले दिन कार्ल हाइण्ड मुझे airport पर छोड़ने आया था। वापसी flight miami की थी जहाँ प्लेन बदलना था। उसके बाद सीधा अपने घर मॉनट्रेयाल।
यहाँ आकर फ़्रैंक से मेरी ख़तोकिताबत 2003 तक चलती रही। हम एक-दूसरे को Christmas Card हमेशा भेजते थे। 2003 के बाद उसकी चिठ्ठियाँ आनी बन्द हो गयीं। हालांकि मेरे पास उससे सम्पर्क करने का कोई और साधन नहीं था, लेकिन फ़्रैंक की याद अभी भी दिल में वैसी ही है जैसी 1968 में थी।
– विजय विक्रान्त
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