देवी नागरानी की ग़ज़लें

1. ग़ज़ल

घरोंदे साहिलों पर जो बने हैं
वो मौजों के थपेड़ों से बहे हैं

ऐ खंजर सब्र कर ले तू ज़रा-सा
पुराने ज़ख़्म तो अब तक हरे हैं

शजर की शाख बेवा-सी है सूनी
ख़िजां में सारे ही पत्ते झरे हैं

जहाँ ख़ामोशियों ने दम है तोड़ा
वहीं रोते हुए पत्थर मिले हैं

उजालो जब से फेरीं तुमने आँखें
मुसलसल तीरगी के सिलसिले हैं

सियासत का है ये बाज़ार यारो
यहाँ तो खोटे सिक्के भी चले हैं


2. ग़ज़ल


वोट लेकर आँख फेरे आज का संसार देखो
बन गई है ये सियासत अब तो इक व्यापार देखो

आज की दुनियाँ में झूठा, छल-कपट का प्यार देखो
लैला-मजनूं पर पड़ी जो, इश्क की वो मार देखो

कितने पापड़ बेले ‘देवी’, वक्त का उपहार देखो
दिन सुनहरे, रात-चाँदी, रचना का ये सार देखो


3. ग़ज़ल


मुखौटे की दुनिया में थी ज़िंदगानी
फ़रेबों में पलती रही ज़िंदगानी

भरोसों की बुनियाद पर थी खड़ी जो
वो धोखे ही खाती रही ज़िंदगानी

फ़रेबों की साज़िश से अब तक घिरी है
रिहा उनसे कब हो सकी ज़िंदगानी

नये मोड़ पर इक नया हादसा था
मिलन और जुदाई लगी ज़िंदगानी

वो तिल- तिल जली, शम्अ- सी बुझ गई फिर
कि यूँ ख़ाक होती रही ज़िंदगानी


4. ग़ज़ल

ज़रा पत्थरो! ध्यान देकर सुनो तुम
कभी दास्ताँ ख़ामुशी की ज़ुबानी

हुई शहर में सारी वीरान सड़कें
करम दहशतों का, बड़ी महरबानी

कभी चाँदनी रात ओढ़ी है हमने
तो चादर कभी धूप की हमने तानी

गया जो गया, उसपे इतना न सोचो
कि बीते न उसके बिना ज़िंदगानी

जमाती है क्या धौंस उनपर वो देवी
ग़रीबों पे दौलत की है हुक्मरानी

उन्हें देवी छेनी से मैंने तराशा
जो सपनों को साकार करने की ठानी।


– देवी नागरानी

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