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उलझा दिए हैं किस तरह
चल पड़ी है वेदना
कविराज बने फिरते हो
चिढ़ाते तुम!
पगलाई आँखें ढूंढती
रूह में लपेट कर
आनंद ही आनंद
धनुष-बाण तेरे घुस आते।
भूत जो अब घट गया है
ना हो उदास, ना हो निराश
*****
-हरिहर झा
हिंदी का वैश्विक मंच
उलझा दिए हैं किस तरह
चल पड़ी है वेदना
कविराज बने फिरते हो
चिढ़ाते तुम!
पगलाई आँखें ढूंढती
रूह में लपेट कर
आनंद ही आनंद
धनुष-बाण तेरे घुस आते।
भूत जो अब घट गया है
ना हो उदास, ना हो निराश
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-हरिहर झा