
नारी कौशल
जीवन की उलट-पलट और झंझावतों के बीच, कभी-कभी मन में कई तरह के विचार उठते हैं। और जब मैं अपने आसपास की घटनाओं, विशेषकर अपने निकटम साथी को सूक्ष्मताओं से निहारता हूँ तो पाता हूँ कि कुछ जीवन अभी भी बहुत कुछ रहस्यमय है, मेरा अबोध मन स्वयं से प्रश्न करता है…..
एक बात मुझे बताओ प्रिये,
मन की दुविधा सुलझाओ प्रिये।
इतने वर्षों के सानिध्य में,
मैंने, कई बार महसूस किया
मेरा अनुभव यह कहता हैं कि
दिन भर की दिनचर्या से,
जब शिथिल हो जाती हो।
छोटे-छोटे कार्यों में जब,
घंटों का समय लगाती हो।
कुम्हलाया सा मुखमंडल,
और पीड़ित सी मनोदशा लिए,
बेचैन सी आँखों में,
गहरी झटपटाहट झलकती है।
बोझल सी वाणी होती है,
तुम गृहसेविका सी लगती हो।
किन्तु उस पल,
जब मैं कहता हूँ कि
चलो प्रिये, आज कहीं और चलें,
कुछ समय आज हम,
बाहर ही व्यतीत करें।
विद्युत-सी प्रवाह हो जाती है,
तुम तुरन्त सजग हो जाती हो।
एकदम चुस्ती आ जाती है,
बैलगाड़ी-सी चलती-चलती तुम,
हवाई जहाज़ बन जाती हो,
मुखमंडल खिल जाता है।
देर रात तक लम्बित कारज,
तीव्र विलुप्त हो जाते हैं।
तुम कोकिला बन जाती हो,
घर हलचल से भर जाता है।
तुम त्वरित गति से वस्त्र बदल,
अप्सरा समान बन जाती हो।
मैं विस्मित, अचंभित, भौंचक्का सा,
कायापलट की कौशलता से,
नारी विज्ञान के सामान्य ज्ञान में,
स्वयं को अक्षम पाता हूँ।
स्वयं को अक्षम पाता हूँ।
एक बात बताओ प्रिये,
मन की उलझन सुलझाओ प्रिये!
*****
– हर्ष वर्धन गोयल (सिंगापुर)