
सोचा ना था कभी
सोचा ना था कभी,
देस से दूर कहीं बस जाना होगा,
करोड़ों की आबादी में भी
खुल कर सांस लेने वाले,
हमको मुठ्ठी भर लोगों में
घुटन महसूस करना होगा।
सोचा ना था कभी,
देस से दूर कहीं बस जाना होगा,
उम्र के उस पड़ाव पर आके
जब अस्थि पंजर जवाब दे रहें,
ज़माने के साथ चलना नहीं अब
ख़ुद को फुल स्पीड में दौड़ाना होगा।
सोचा ना था कभी
देस से दूर कहीं बस जाना होगा,
टूटी फूटी अंगरेजी बोल के जीभ हो गई टेढ़ी
लैपटॉप..मोबाइल..टाइपिंग..सब,
सीख सीख के अकड़ गई हैं उंगलियां सारी
ख़ुद में अब ये बदलाव लाना होगा।
सोचा ना था कभी
देस से दूर कहीं बस जाना होगा,
क्या हुआ गर शुरू से शुरू करना पड़े तो
आत्मविश्वास ख़ुद में जगाना होगा,
नए नजरिए से ज़िन्दगी को जीने के लिए
परदेस में परदेस को दोस्त बनाना होगा।
सोचा ना था कभी
देस से दूर कहीं बस जाना होगा,
क्यों ना फिर से..
अपने आप को तलाशने निकल जाएं
परदेस में एक नई पहचान बनाई जाए।
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– अंतरा राकेश तल्लम