बदलती ऋतु

तुम..जैसे..
इंग्लैंड की कड़कड़ाती ठंड में खिली,
किरन एक छोटी सी सुनहरी धूप की।

तुम..जैसे..
पतझड़ के मौसम में वो पत्तियाँ झड़ी,
धरती सजी तमाम रंगों की रंगोली सी।

तुम..जैसे..
ओले और बर्फ़बारी की चादर ओढ़े,
सफेद शुगर फ्री बुड्ढी के बाल सी।

तुम..जैसे..
भीषण गर्मीयों में तपती जलती,
मंदिरों की अलौकिक अखंड ज्योति सी।

तुम..जैसे..

अतिशय बारिश अथाह बाढ़ स्थिति में,
मन को चंगा करने मां गंगा घर ले आती।

तुम..जैसे..
बहार बसंत की, महक फूलों की,
आंखों का सुकून, मुस्कान चेहरे की।

तुम..जैसे..
कोई छल, कोई भ्रम हो ..
या फिर सच में एक..
सकारात्मक संतुष्ट सरल सोच हो मेरी।।

*****

– अंतरा राकेश तल्लम

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