
तुम कहो तो मैं लिख दूँ
चूल्हे की रोटी का वो स्वाद,
जो माँ के प्यार से रचा था,
मोहल्ले की दादी का आशीर्वाद,
जहाँ हर गम छुप जाता था।
तुम कहो तो मैं लिख दूँ।
रास्ते वाले बाबा का आशीर्वाद,
जो हर राह आसान कर जाता था,
वो पीपल का पेड़,
जहाँ हर ख्वाब ठहर जाता था।
तुम कहो तो मैं लिख दूँ।
खेल के मैदान की वो दौड़,
जिसमें गिरने का डर नहीं था,
गन्नों की चोरी की वो मीठी बातें,
जो अब सिर्फ यादों में बची हैं।
तुम कहो तो मैं लिख दूँ।
मेरी स्कूल वाली साइकिल की वो खटर-पटर,
जो हर सुबह को गीत बना देती थी,
वो स्कूल का पानीपूरी वाला,
जिसके आने से दिन खिल उठता था।
तुम कहो तो मैं लिख दूँ।
गर्मी से आँखे और चहरे का लाल हो जाना।
जो जिंदगी का पाठ पढ़ाता था,
और बचपन के वो दोस्त,
जिनके बिना हर खेल अधूरा लगता था।
तुम कहो तो मैं लिख दूँ।
ये यादें जो दिल के कोने में बसी हैं,
पर लिखते-लिखते शायद रुक जाऊँ,
क्योंकि इनकी खुशबू आँखें नम कर देती है।
पर तुम कहो तो मैं और लिख दूँ।
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– अतुल शर्मा