
मुझे क्या मिला
कभी कभी सोचा करता हूँ मुझे क्या मिला
तीस वर्ष तक तीन देश में अध्यापन कर
शोधकार्य में शिक्षण में भी नाम कमाया
सतत परिश्रम करने पर भी मुझे क्या मिला
कभी सोचता हूँ इस जग से क्या मैं माँगूँ
ससम्मान जीवित रहना ही यहाँ बहुत है
बड़े-बड़े जो महापुरुष थे हमसे बढ़कर
जिनमें से सुकरात व् ईसा, गाँधी जैसे
माननीय थे, श्रेष्ठ पुरुष थे उन्हें क्या मिला
उन्हें मिला विष का प्याला, फाँसी या गोली
यही सोचकर शांत हो गई मेरी लिप्सा
कहता है मन, यह मत सोचो मुझे क्या मिला
कर के निज कर्तव्य तजो बदले की इच्छा
सोचो हम को जो मिल पाया वही बहुत है
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– स्व. डॉ. ब्रजराज किशोर कश्यप