
आओ चलें वहाँ
आओ चलें वहाँ, जहाँ न कोई द्वेष राग हो,
हों प्रेम के आदर्श और भावना सुभाष हो,
हो ज़िन्दगी का मूल्य, जहाँ कोई न हताश हो,
मेरी कल्पनाओं में कदाचित ऐसा कोई वास हो।
मेरी भावनाओं में कहीं इक ऐसा नवल निर्माण हो,
बहरूपि ये इस जग में कही शायद ऐसा प्रमाण हो,
संभ्रांत हो, सुशांत हो, मन न कोई भ्रांत हो,
एक ऐसा युग आये कभी, जिसमें न कोई क्लांत हो।
मन विहग उड़े स्वछन्द, न कभी कोई परतंत्र हो,
गौरव बढ़े निष्ठा रहे, मेरा देश भी धनवन्त हो,
नव सूर्य का विहान हो, हर कलुष का निदान हो,
है आस मुझको बस यही मेरा देश सबसे महान हो।
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– भगवत शरण श्रीवास्तव ‘शरण’