
यदि सुख लंबा बना रहे तो
यदि सुख लंबा बना रहे तो
मन में द्वंद्व उठाता!
मानव – मन से एक दशा में
लंबा रहा न जाता!
यदि सुख बना रहे दिन – प्रति दिन
मन में उदासीनता छाती!
परिवर्तन की माँग गहन हो
अटल – अचल बन जाती!
हो जाता अनिवार्य किसी
परिवर्तन का आमंत्रण!
चाहे उससे मिल न सके
कुछ उपयोगी संवर्धन!
परिवर्तन तो परिवर्तन है
सुख या दुख लाएगा!
जीवन का प्रतिबिंब
उसी अनुसार बदल जाएगा!
मन की चंचलता प्रसिद्ध है
स्थिर कब हो पाता!
और कुछ नहीं जब बन पड़ता
सपनों में खो जाता!
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– स्व. डॉ. शिवनन्दन सिंह यादव