
थोड़ा बहुत
चले साँस जल्दी या चले हौले-हौले
थोड़ा-बहुत मैं जी लेती हूँ।
जब तक है साँस तब तक है आस,
थोड़ा-बहुत हौसला रखती हूँ।
दुनिया के रस गर हो खट्टे या मीठे
थोड़ा बहुत मैं चख़ लेती हूँ।
ख़ुशी और ग़म के मिले गर प्याले,
थोड़ा-बहुत घूँट भर लेती हूँ।
दिल में जो शिकवा हो या रंजिश
थोड़ा बहुत लबों में सी लेती हूँ।
कहीं खो न जाए नज़र से, जिगर से
थोड़ा-बहुत याद कर लेती हूँ।
कभी साज़े-दिल में तराने उठें तो
थोड़ा-बहुत गुनगुना लेती हूँ।
बदलते समय की मायूसियों में,
थोड़ा-बहुत सिसक लेती हूँ।
किया जब उन्होंने इज़हारे-मोहब्बत
थोड़ा-बहुत यक़ीं मैं कर लेती हूँ,
यह चेहरों की रौनक़, यह दिल की ज़बानें
थोड़ा-बहुत मैं समझ लेती हूँ॥
कोई जब पुकारे चौख़ट पर आकर
थोड़ा-बहुत मैं सुन लेती हूँ।
ज़िंदगी कट गई, कुछ कट जाएगी बाक़ी
थोड़ी-बहुत हिम्मत हृदय में रखती हूँ॥
जिनसे सजाई यह रंगीन महफ़िल
थोड़ा-बहुत मैं उसे खोजती हूँ।
‘जौहर’ जिसने बख़्शी है अनमोल साँसें,
थोड़ा-बहुत मैं उसे पूजती हूँ॥
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– सरोजिनी जौहर