
मेरी काया
श्वासों के द्वार पर खड़ी
मेरी काया
काल का कासा पकड़े
मुक्ति का दान माँगती है!
मेरी काया
मेरा दिल चाहता है,
तेरे मस्तक पर मैं कोई नया सूरज
रौशन कर दूँ!
तेरे पैरों को
आकाश गंगा-सा
कोई सफ़र कर दूँ!
तेरी प्यास मिटाने को
अंजिल भर सागर मैं दूँ!
सोच तेरी में
नीला अंबर भर दूँ!
लेकर एक मुठ्ठी
इस मुक़द्दस मिट्टी की
हथेली तेरी पे रख दूँ!
अचानक ही खुल जाए
इस जीवन का रहस्य
ऐसा तुझे वायुमंडल दूँ!
मेरी काया
मेरे दिल चाहता है
तुझे यह वर दूँ
इस काल-चक्र से
मुक्त तुझे मैं कर दूँ!
मेरी काया
मैं चाहूँ
तुझे नई दिशा
नया चिंतन
नया जीवन दूँ . . .!
*****
सुरजीत