
वी॰ रा० जगन्नाथन: भाषाविज्ञान के पुरोधा
तमिल भाषिक वी॰रा० जगन्नाथन एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। वे एक भाषाविद, कोशकार, उपन्यासकार और अनुवादक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार और विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
शिक्षा और व्यवसाय:
जगन्नाथन ने हिंदी और भाषा विज्ञान में एम॰ए॰ और हिंदी में पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की है। वे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से भाषाविज्ञान विशेषज्ञ के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं।
प्रकाशन:
जगन्नाथन ने विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें और लेख लिखे हैं। उनके कुछ प्रमुख प्रकाशन इस प्रकार हैं:
* नवभारत (उपन्यास)
* छात्रकोश
* लघु छात्रकोश
* स्वयं हिंदी सीखें
* प्रयोग और प्रयोग (प्रयोग-व्याकरण)
* स्पोकन हिंदी-अ माइक्रोवेव अप्रोच 1973
* नव्य हिंदी व्याकरण 2003
* सरल हिंदी कोश 2010
* लगभग 80 शोधपत्र और आलेख प्रकाशित
पुरस्कार और सम्मान:
जगन्नाथन को हिंदी भाषा और साहित्य में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया है। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
* हिंदी पंचानन विश्व हिंदी समिति न्यूयार्क
* बाबू श्यामसुंदर दास सम्मान उ.प्र.हिंदी संस्थान लखनऊ
* गांधी प्रतिष्ठान हैदराबाद
* भाषा विमर्श कोलकाता
* अक्षरम हिंदीसेवी सम्मान नई दिल्ली
* जस्टिस शारदाचरण मित्र स्मृति सम्मान, भाषासेतु 2005
* नेहरू युवा केंद्र संगठन लखनऊ द्वारा अभिनंदन 1998
विशेषज्ञता और रुचि के क्षेत्र:
जगन्नाथन की विशेषज्ञता और रुचि के क्षेत्र शोध, कोशकारिता, उपन्यास, भाषा विज्ञान और अनुवाद हैं। उन्होंने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वी॰रा० जगन्नाथन एक समर्पित भाषाविद और साहित्यकार हैं। उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अनेक विदेशी छात्रों को हिंदी पढ़ाया है। हिंदी भाषा शिक्षण के क्षेत्र में निष्ठावान अध्यापक के नाते वे आज भी सक्रिय है।
उनकी उपलब्धियों और योगदानों को देखते हुए, यह कहना उचित होगा कि वे हिंदी भाषा और साहित्य के सच्चे सेवक हैं।
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