डॉ. मारिया नेज्यैशी: भारत और हंगरी के बीच भाषाई और सांस्कृतिक सेतु

डॉ. मारिया नेज्यैशी एक प्रतिष्ठित भाषाविद्, इंडोलॉजिस्ट, अनुवादक और शिक्षिका हैं।  वह Eötvös Lorand University के भारतीय और यूरोपीय अध्ययन विभाग की अध्यक्षा हैं, जहाँ वह हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।  डॉ. नेज्यैशी का जीवन और कार्य भारत और हंगरी के बीच एक मजबूत सांस्कृतिक और भाषाई सेतु का निर्माण करता है।

शिक्षा और अकादमिक पृष्ठभूमि:

डॉ. नेज्यैशी की शैक्षणिक पृष्ठभूमि बहुआयामी और प्रभावशाली है। उन्होंने प्राचीन यूनानी और लैटिन में एम.ए. की डिग्री हासिल करने के साथ-साथ भारतीय विज्ञान में भी एम.ए. किया है।  संस्कृत साहित्य में एम.फिल. और भारत में हिंदी में पीएचडी की उपाधि ने उनकी भारत और भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी रुचि और समर्पण को दर्शाया है।  उनकी शिक्षा का व्यापक दायरा उन्हें भाषाविज्ञान, साहित्य और अनुवाद के क्षेत्रों में विशिष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

भाषाविज्ञान में योगदान:

डॉ. नेज्यैशी ने भाषाविज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  उनके शोध और प्रकाशन हिंदी भाषा के विकास, उसकी संरचना और विभिन्न भाषाई प्रभावों की पड़ताल करते हैं।  “गो-पाल से टैक्सी-वाले तक – एक हिंदी प्रत्यय का इतिहास” और “From cowherds to taxi drivers — some remarks on a Hindi suffix” जैसे उनके लेख हिंदी भाषा के भाषाई तत्वों के ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों की व्याख्या करते हैं।  उन्होंने प्रेमचंद और मोरित्स जिग्मोन्द के कथा साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन भी किया है, जो दो संस्कृतियों के साहित्यिक संबंधों पर प्रकाश डालता है।

अनुवाद के क्षेत्र में योगदान:

डॉ. नेज्यैशी एक कुशल अनुवादक भी हैं। उन्होंने हंगेरियन साहित्य को हिंदी में और हिंदी साहित्य को हंगेरियन में अनुवादित करके दोनों भाषाओं के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है।  जिग्मोन्द मोरित्स के कार्यों का हिंदी में अनुवाद और असगर वजाहत, प्रेमचंद और मोहन राकेश जैसे हिंदी लेखकों की कृतियों का हंगेरियन में अनुवाद उनकी भाषाई दक्षता और सांस्कृतिक समझ का प्रमाण है।

विश्वकोश में योगदान:

डॉ. नेज्यैशी ने हंगेरियन विश्व साहित्य कोश में रसखान, रैदास, रामानुजन, रहीम, रामधारी सिंह दिनकर, उग्र, उम्र अली शाह, महादेवी वर्मा, वृंदावनलाल वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, निर्मल वर्मा, रामकुमार वर्मा, श्रीकांत वर्मा, असगर वजाहत, धीरेन्द्र वर्मा और वंशवजरा जैसे महत्वपूर्ण भारतीय लेखकों और कवियों पर प्रविष्टियाँ लिखकर हिंदी साहित्य को हंगेरियन पाठकों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

शिक्षण और प्रसार गतिविधियाँ:

डॉ. नेज्यैशी एक समर्पित शिक्षिका भी हैं। उन्होंने हंगरी में हिंदी भाषा और आधुनिक भारतीय भाषाओं के शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किए हैं।  “हंगरी में हिंदी : नये आयाम” और “हिंदी का फैलता दायरा” जैसे उनके लेख और व्याख्यान हंगरी में हिंदी भाषा के विकास और उसके महत्व पर प्रकाश डालते हैं।  उन्होंने “भारत: हंगेरियन दृष्टिकोण” जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकों के संपादन में भी योगदान दिया है।

पुरस्कार और सम्मान:

डॉ. नेज्यैशी को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।  2005 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो हंगरी में हिंदी अध्ययन को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को मान्यता देता है।  1999 में उन्हें छठे हिंदी विश्व सम्मेलन में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित किया गया था।

अन्य उल्लेखनीय गतिविधियाँ:

डॉ. नेज्यैशी प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस का आयोजन करती हैं, जो हिंदी भाषा और संस्कृति के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।  उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में “हंगरी में हिंदी अध्ययन” पर एक विशेष व्याख्यान दिया था और अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं।

विशेषज्ञता और रुचि के क्षेत्र:

डॉ. नेज्यैशी की विशेषज्ञता और रुचि के क्षेत्र व्यापक हैं, जिनमें हंगरी, यूरोप, अनुवाद, शिक्षण, भाषाविज्ञान, कोशकारिता और हिंदी भाषा और संस्कृति का प्रचार शामिल हैं।  वह भारत और हंगरी के बीच सांस्कृतिक और भाषाई संबंधों को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रही हैं।  डॉ. मारिया नेज्यैशी का जीवन और कार्य भाषा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जो दो देशों के बीच मित्रता और समझ को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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– विजय नगरकर

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