विश्वास दुबे मेरे समकालीन और हम उम्र लेखक मित्रों में सबसे करीब हैं इसलिए उनका दूसरा कविता संग्रह प्राप्त हुआ तो बहुत खुशी हुई। हम दोनों नीदरलैंड में रहते हैं और उनको सीधे सुनने का भी सौभाग्य मिलता है इसलिए उनकी कविताओं से एक अलग जुड़ाव है। पुस्तक का शीर्षक “एहसासों की सिलवटें” इस बात का द्योतक है कि वे मानवीय संवेदनाओं को कलम के रास्ते कागज पर उतारने में माहिर हैं और यह शीर्षक पाठक को भावनाओं के समंदर में गोते लगाने के लिए पहले ही तैयार करता है। पहली बार के पाठकों के लिए यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि अपनी पहली पुस्तक “प्रेम और वाणी” में विश्वास ने एक अनूठा प्रयोग किया है जिसमें कविता और लघु कथाएँ एक दूसरे के साथ कुछ इस तरह संजोई गई हैं जैसे एक कुशल माली ने एक ही क्यारी में दो तरह के फूल को ऐसा लगाया हो जैसा पहले कभी नहीं देखा।
लगभग सौ कविताओं को समाहित करती यह किताब शुरूआत से ही पाठक के मन को छू जाती है और प्रेम के ताने-बाने को उकेरने लगती है जब वे लिखते हैं “जज्बात गुम और हम बेजुबान/ बस भागते रहे न जाने क्या पाने”। पुस्तक की शीर्षक वाली कविता से हम सभी निश्चित जुड़ पाएँगे जिसमें उन्होंने साफगोई से लिखा है कि उम्र भर हम कई उतार-चढ़ाव से गुजरते हैं जिनकी सलवटें ज़िंदगी की लिहाफ पर पड़ती जाती हैं।
यह किताब बस इस लाइन से सार्थक हो जाती है जब वे लिखते हैं “मैं सुन रहा हूँ गौर से अपनी कहानी बता/ लग रही मुझे मेरी सी तू मुँह जबानी बता” और फिर पाठक यही मान लेता है कि यह किताब लिखी भले विश्वास दुबे ने हो पर ये कहानी मेरी अपनी ही है। इस किताब की हर कविता आपको किसी ना किसी लाइन पर एक दावा पेश करती हुई मिलेगी और उसको पूरे अधिकार के साथ विश्वास ने लिखा भी है – “अनकहे सवालों के अनसुने जवाब लिखूंगा” और जब आप आगे पढ़ते जाएँगे तो आपको ये पक्तियाँ एकदम से वाह कहने विवश कर देंतीं जब वे लिखते हैं “पलटते पन्ने दर पन्ने खुल रहे कई राज/ जैसे आहिस्ता सरकता हिजाब दे गया”। इस किताब में ऐसी भी कविताएँ हैं जो ढर्रे से हटकर हैं जैसे कि एक युवक अपनी प्रेयसी को बताता है कि वह अपनी माँ से कितना प्रेम करता है और वो सादगी से कहता है “जो भी तुमसे कभी कह न सका/ वह सब मैंने उनको बताया था”।
उनकी पहली पुस्तक में एक बात जो मैंने देखी थी कि जब वे प्रचलित भावों को लिखते हैं तो उसमें एक नयापन लाने के साथ ही उसे अपना साबित करने का हुनर भी उन्हें आता है और एक बार फिर इस किताब में वह साबित होता है जब वे लिखते हैं “आज तुम्हारे शहर से गुज़रना हुआ/ यादों की नदी में जैसे उतरना हुआ”, “तुम परवाह करते रहे ज़माने की/ हिम्मत न कर सके पास आने की” और “माना हम सुलह कर चुके हैं दर्द से/ तुम्हें अपने ज़ख्म दिखाऊं या नहीं” आदि। इस किताब में कई ऐसी कविताएँ हैं जिन्हें महफ़िलों में सुनकर वाहवाही लूटते हुए मैंने खुद देखा है जैसे “राधा और श्याम”, “बहुत पुरानी बात है”, “बात बनानी आयी है”, “मिले मुद्दतों बाद” आदि। उनकी कविताएँ जीवन से जुड़ी हर भावना को प्रतिबिम्बित करती हैं चाहे वह लड़कपन का प्यार हो या जवानी में सफलता पाने की आपाधापी, रोज मर्रा के किस्से हों या फिर देश और समाज कि प्रति अपनी चेतना। कोई कविता दिल की कसक को बयान करती है तो कोई सच्चे प्यार का वादा करती है।
पुस्तक प्रकाशन में कहीं-कहीं कुछ त्रुटियाँ भी हुई जिन्हें छापने के पहले ही पकड़ा जाना चाहिए था जैसे कि “कैसी पहरेदारी है” और “मेरे ज़हन में” एक ही कविता है जो दो अलग शीर्षक से छप गई है। कुछ और छोटी मोटी बातें हैं जैसे कि कविताओं की सूची वाले पन्ने की हेडिंग अंग्रेजी में है और किंडले संस्करण में कई बार एक कविता के समाप्त होते ही उसी पन्ने पर दूसरी कविता शुरू हो जाती है आदि। साथ एक बात जो मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूँ कि देवनागरी में लिखी कविताओं में नुक्ता लगाना सही नहीं है। वास्तव में नुक्ता का यह प्रचलन सन् 2022-23 के बाद कम्प्यूटर और मोबाइल के टाइपिंग के टूल्स में हुए तकनीकी बदलाव के कारण बेतहाशा बढ़ गया है।
उनकी यह पुस्तक आइसेक्ट प्रकाशन भोपाल से छपी है और इसे प्रकाशक के पास से सीधे प्राप्त किया जा सकता है और उसके साथ ही ऐमजान और अन्य ऑनलाइन माध्यमों से लिया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि डिजिटल किताब के रूप में किंडल पर भी उपलब्ध है जो इसे परम्परागत और नए, दोनों पाठक वर्गों के रुचि के अनुरूप उपलब्ध कराता है।
आशा करता हूँ कि यह अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचे क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों को बहुत पसंद आएगी
मनीष पाण्डेय, नीदरलैंड

- आई एस बी एन न०: 978-93-48043-11-5
- पुस्तक का नाम: एहसासों की सिलवटें
- लेखक : विश्वास दुबे, हेग (नीदरलैंड)
- प्रकाशक का नाम, प्रकाशन स्धल: आइसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल (भारत)
- प्रकाशन वर्ष: 2024
- आवृत्ति: 1
- पुस्तक का मूल्य : 260 रू
- समीक्षक का नाम: मनीष पाण्डेय ‘मनु’, एम्स्टर्डैम (नीदरलैंड)