
डायरी के पन्ने से……द रिफ्यूज़ कलेक्टर
– उषा राजे सक्सेना
मेरी अपनी सांस्कृतिक पहचान और मूल्य जो इस ब्रिटिश समाज के दबदबे में खो गए थे। आज इस इनसेट (इन-सर्विस ट्रेनिंग) में पूरे जोर-शोर से उभर कर सामने आए। मेरा स्व बहुत संतुष्ट था। मुझे यह इनसेट, इनसेट न लग कर एक सांस्कृतिक-उत्सव सा लग रहा था। इनसेट बहुत सफल रहा। अपनी संस्कृति और सभ्यता पर बोलना और उसका बिस्तार करना मुझे सदा अच्छा लगता रहा है। आज मेरे सभी साथियों और इनसेट में आए लोगों ने भारतीय परिधान पहने हुए थे। गोरे ब्रिटिशर्स भारतीय भोजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लुत्फ उठाते हुए सहर्ष जानकारियां ग्रहण कर रहे थे।
इनसेट में आए हुए सभी शिक्षक और शिक्षाविद् मुझे तथा मेरे साथी शिक्षकों को बधाइयां दे रहे थे। कुछ लोग प्रर्दशनी में लगे भारतीय कलात्मक वस्तुओं, पुस्तकों, परिधानों, साग-भाजी और मसालों आदि की प्रदर्शनी देखने में व्यस्त थे।
तभी सोशल वर्कर मिस बार्कर, डेपुटी डाइरेक्टर मिस हिचिंस के साथ आई और मेरी ओर देखती हुई हेडमिस्ट्रड जेनिफर से बोली,
‘आपके कैचमेंन्ट एरिया के एक परिवार में फ़ोस्टर (पाले जाने के लिए) बालक आया है। यह बालक तुम्हारे यहां रिसेप्शन क्लास में आएगा।’
जेनिफ़र ने छूटते ही कहा, ‘हमारा स्कूल टू फॉरमेन्ट्री (सालाना मात्र दो दाखले वाला) है। हम लोग सत्र के बीच नया दाख़ला नहीं देते है। सारे बच्चे असहज हो जाते हैं।’
पर डेपुटी डायरेक्टर ने बीच में ही दखल देते हुए कहा,
‘नहीं-नहीं यह नया दाखला नहीं है। बच्चा साढ़े पांच साल का है। वह ईस्ट-लंदन से इस परिवार में फ़ोस्टर होने के लिए आया है। सीधा ट्रांसफर केस है।
जेनिफर ने मेरी ओर अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मेरी कक्षा में चौबिस बच्चे थे। पच्चीस मैक्सिमम नम्बर है। एक जगह खाली थी।
सोशल वर्कर रोजमैरी बार्कर ने आगे बढ़ कर कहा,
‘वो लोग एजहिल रोड पर वन-ओ-थ्री में आए हैं। वह आपका कैचमेंट एरिया है।’ वह मेरी ओर देख कर कुछ विचित्र ढंग से मुस्कराई। रोजमेरी से मेरा साबका अक्सर ‘स्पेशल नीड’ यानी ‘मेन्टली चैलेनज्ड’ बच्चों को लेकर पड़ता है। रोजमेरी योग्य होने के साथ-साथ तेज और खुर्राट होने के साथ थोड़ी नस्ली भी है, वह अक्सर मेरी योग्यता को चुनौती देती है, मैं इंडियन जो ठहरी।
‘ओ यस,’ मैंनें कहा, ‘शायद वह मकान बहुत दिनों से खाली पड़ा था।’
‘हां-हां, वही-वही।’ कहते हुए रोजमेरी अपना भार हमारे जिम्मे लगा कर चलती बनी।
डेपुटी डाइरेक्टर मिस हिचिन्स ने बातों का सूत्र अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘दिस चाइल्ड इज स्टेटमेंटेड। अ चैलेंज फार यू मिस वर्मा।’ उसने मेरी आंखों में सीधे देखते हुए कहा।
‘वास्तव में यह बच्चा कई स्कूलों, कई घरों में रह चुका है, न तो किसी स्कूल में उसकी उचित शिक्षा हो सकी और न ही किसी घर में उसका सही लालन-पालन हो सका। उसका जीवन बहुत दुखद और कष्टप्रद रहा है। आप तो बहुत योग्य शिक्षक हैं, आप उसे संभाल लेंगी।’
‘आई एम श्योर यू विल टेक द चैलेंज एन्ड एन्ज्वाए वर्किंग विथ हिम।’ वह जाने को मुड़ी फिर चलते-चलते साड़ी की चुन्नट को बांई हाथ से सम्भालते हुए मुस्करा कर बोली, ‘मिस वर्मा इस प्रदर्शनी को पूरे एक हफ्ते तक चालू रखिए। स्थानीय अखबारों में इसकी चर्चा होनी चाहिए। और सुनो, मुझे साड़ी पहनकर बहुत अच्छा लगा। मैं आज सारे दिन इसे पहने रहूंगी। यह एक शानदार लिबास है।‘ कहते हुए जब वह मुस्कराई तो उनके चेहरे पर बच्चों सी खुशी झलकी।
इनसेट की गहमागहमी और कक्षा के प्रबंधन के बीच एक सप्ताह निकल गया। बच्चे की कॉनफीडेन्शियल रिपोर्ट आ गई। जेनिफर जब मुझे फाइल देने आई तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें थी। उसने बताया बच्चा केवल स्टेटमेंन्टेड ही नहीं था वह ‘अनयूज्वली क्वायट’ भी है।’
फाइल के उपर ‘बीस्माट’ नोन एज ‘बीमा” लिखा हुआ था। फाइल के अंदर एक भूरा सीलबंद ‘कॉन्फीडेंशियल’ लिफाफा था।
क्लास रूम को व्यवस्थित कर मैं फुरसत में रिपोर्ट पढ़ने बैठी।
रिपोर्ट में लिखा था ‘बीस्माट का जन्मदिन और जन्म स्थान दोनों ही काल्पनिक है। वह ‘वार्ड ऑफ़ कोर्ट’ है यानी सरकारी बच्चा।’ जीजस । मेरे मुंह से दुःखद निश्वास निकला…
मैंने फिर रिपोर्ट पर नजर गड़ाई। रिपोर्ट बता रही थी कि 2 अगस्त, 1970 को पांच फुट दो इंच की एक नाटी, श्वेत-वर्ण, भारी शरीर, लंबे काले बालों वाली पोलिनेसियन स्त्री लंदन हॉस्पिटल, व्हाइट-चैपल, ईस्ट में दिन के ग्यारह बजे दाखिल हुई। स्त्री के साथ उसका चार वर्षीय, घुंघराले ललछौंहे रंग के बालों वाला, कारकेसियन-सा दिखने वाला बालक भी था। स्त्री को तेज रक्तस्त्राव और बालक को तेज बुखार हो रहा था। पूछ-ताछ करने का वक्त नहीं था। अस्पताल की नर्स मटिल्डा जेम्स ने तुरंत दोनों को एडमिट कर लिया था। स्त्री के गर्भाशय में किसी नुकीली वस्तु का प्रवेश हुआ था। डी.एन.सी. से पहले ही स्त्री ने दम तोड़ दिया। स्त्री के पास ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे उसके निवास स्थान अथवा संबंधियों का पता चल सके। स्त्री की बांई बांह पर टैटू था जिस पर चित्रित स्क्रॉल के ऊपर ‘बीस्माट’ शब्द अंग्रेजी में लिखा हुआ था।
तमाम खोज-बीन के बाद भी यह नहीं पता चल सका कि ‘बीस्माट’ किस भाषा का शब्द है और इसका क्या अर्थ है। स्त्री के बदन पर केवल एक सूती पिनाफोर और प्लास्टिक की सेनिटरी पैन्टी थी जो खून से बुरी तरह लथपथ हो रही थी। बालक ने मदर-केयर का बेबी ग्रो पहना हुआ था। पोर्टर ने बताया, ‘वह स्त्री बालक के साथ अकेली ही कॉरीडोर में घुसी थी। उसके या बालक के हाथ में कुछ भी नहीं था। स्त्री नीम-बेहोश थी।’
घटना की सूचना हॉस्पिटल ने तुरंत ही स्थानीय पुलिस और सोशल-वर्कर को दे दी। बालक दो महीने ‘चिल्ड्रेन वार्ड’ में रहा। मां की मृत्यु ने उसके दिमाग पर गहरा सदमा पहुंचाया था। पुलिस खोज-बीन करती रही। स्त्री का पोस्टमार्टम हुआ। अखबार और टी.वी. में मृत स्त्री और बालक के फोटो के साथ ‘बीस्माट’ शब्द के बारे में भी इश्तहार निकला। पर कहीं से कोई सूचना नहीं मिली। अंत में बच्चे को ‘वार्ड ऑफ कोर्ट’ (सरकारी बच्चा) डिक्लेयर कर के उसे ‘चाइल्ड वेल्फेयर डिपार्टमेंन्ट’ को सौंप दिया गया। शव अभी भी मार्चुवरी में है। कोर्ट ने फैसला किया बालक का नाम स्त्री के हाथ पर टैटू से लिखे शब्द के अनुरूप ‘बीमा बीस्माट’ होगा ताकि उसकी पहचान बनी रहे।
बीमा बीस्माट का जन्म दिन दो अगस्त 1968 निश्चित किया गया जो काल्पनिक होते हुए भी उसके जीवन के सत्य से जुड़ा हुआ है।’
इस अनचीन्हें बालक के प्रति मेरा मन विह्वल हो उठा। मैं सिर से पांव तक सिहर उठी। आह! यह कैसा नृशंस संयोग है। नन्हा सा निर्दोष बालक जिसने अभी-अभी आंखें खोली है उसे क्या पता ? उसे किन अंधेरों से गुजरना होगा !
अब यह बालक मेरी कक्षा में होगा। मैंने मन-ही-मन निर्णय लिया। इस बालक बीमा को मैं एक केस हिस्ट्री की तरह स्टडी करूंगी। बीमा बीस्माट हमारे स्कूल में पांच वर्ष की अवधि तक रहेगा। इस बीच हमारा प्रयास होगा कि हम अपने स्कूल में उसके लिए एक ऐसा परिवेश तैयार करें, जिसमें वह कभी भी अपने आप को अपरिचित, अनाथ और अकेला न महसूस करे। आठ वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते हम उसे कॉन्फिडेन्ट एवं आत्म सम्मान से युक्त एक साधरण बालक बना देंगे। नवें वर्ष के आरम्भ में जब वह क्रैनमां हाई में जाएगा तब तक उसकी उपलब्धियां एक साधारण बालक जैसी हो चुकी होंगी।
एजूकेशन ऑफिस, जेनिफर तथा मेरे सभी साथियों को मेरी योजना पसंद आई। उन लोगों ने मुझे हर तरह की सहायता का वचन दिया। बाद में जेनिफर ने अकेले में मुझे यह कह कर सावधान किया कि इस तरह के केस में प्रोफेशनैलिजम की बहुत कड़ी परीक्षा होती है। मुझे भावुकता से बचना होगा।
उसके बाद और भी तमाम रिपोर्ट थी, जिससे पता चलता था, बालक के बहुत सारे मेडिकल टेस्ट हुए। बालक ‘लेफ्ट हैंडेड’ है। उसके बाएं हाथ की उंगलियां कुछ टेढ़ी हैं। इसलिए उंगलियों में पूरी पकड़ नहीं है। ऑपरेशन के बाद उंगलियां संभवतः ठीक हो जाएंगी। प्रतिकूल परिस्थितियों और परायेपन के व्यवहार के कारण बालक चुप्पा और जिद्दी हो गया है। बालक के ‘वोकल कॉर्ड्स’ बिल्कुल ठीक हैं। चाइल्ड साईकॉलजिस्ट ने अभी उसे ‘इलेक्टिव म्यूट’ की संज्ञा दी है।’ अनुकूल वातावरण उसके मन-मस्तिष्क को ‘मोटिवेट’ करेगा। समय के साथ बीमा की मुखरता पनपेगी।
स्कूल ने पालक-माता के साथ बीमा की प्रगति के लिए अपनी स्ट्रेटजी बना ली। चूंकि बीमा ‘स्पेशल नीड और मेन्टली चैलेनज्ड चाइल्ड’ था अतः मुझे और मेरी असिसटेंट स्टेला को उसे ‘होम-विजिट’ करने की सुविधा मिली हुई थी।
बीमा के पालक-माता के साथ समय निश्चित कर, अगले दिन मैं स्टेला के साथ बीमा तथा उसकी पालक-माता मिसेज रॉबिन्स से मिलने उनके घर पहुंची। दिन के ग्यारह बजे थे। गबदा-सा भूरे घुंघराले बालों वाला बीमा अपने बेडरूम का पर्दा हटा कर बाहर झांक रहा था। मुझे और स्टेला को आते देखकर वह पर्दे के पीछे छुप गया।
उसे मालूम था कि हम उससे मिलने आ रहे है। मिसेज रॉबिन्स ने नीचे से आवाज दी, ‘बीमा, लुक योर टीचर हैज कम टु विजिट यू। शी हैज ब्रॉट सम गिफ्टस फॉर यू।’ ऊपर से न तो कोई आवाज आई ना ही कोई आया। मैंने मिसेज रॉबिन्स से कहा, ‘अगर हम खुद ऊपर चले जाएं तो कैसा रहेगा ?’
‘जाओ, खुशी से जाओ, गुड-लक अगर उसके दर्शन हो जाए तो। बीमा बेड के नीचे छुपा बिल्ली की तरह बैठा होगा।’ उसने हंसते हुए कहा, हंसी में हल्की-सी तिक्त्तता थी।
‘क्यों क्या बात है? आपके साथ उसका व्यवहार कैसा है? आप मुझे बीमा बीस्माट के बारे में तफसील से बताएं। मैं उसकी रिपोर्ट पढ़ चुकी हूं। बिना आप के सहयोग के हम उसकी कमजोरियों पर पॉजिटिव ढंग से काम करके उसे एक नार्मल व्यक्तित्व नहीं दे सकते हैं।
‘जब आप रिपोर्ट पढ़ चुकी हो तो आपको मालूम हो चुका होगा कि वह किन विसंगतियों और त्रासदी से गुजरा है। मैं स्वयं भी उसे अच्छी तरह समझ नहीं पाई हूं। लोग उसे गूंगा, बहरा, बेवकूफ़ और आलसी समझते रहे हैं। उसका दाहिना हाथ बेहद कमजोर है। बाएं हाथ की उगलियां हल्की-सी टेढ़ी है।’
फिर रुककर उन्होंने बेहद धीमी आवाज में फुस्फुसाते हुए कहा, ‘और हां, अभी भी वह नर्वसनेस में बेड और पैंटी गन्दी कर देता है। वह शर्मीला और बेहद संवेदनशील और संकोची है।’
फिर मेरी आंखों में सीधा देखते हुए मेरे मनोभावों को पढ़ते हुए बोली, ‘बीमा एक पालतू बिल्ले की तरह है। कई बार उदण्ड हो जाता है। वैसे वह सारे दिन ऊपर कमरे में बेड के नीचे खेलता या सोता रहता है। वह आपके सामने आ जाए तो यह बड़े आश्चर्य की बात होगी’ मेरा मन द्रवित हो उठा। मैं बीमा से मिलने को आतुर हो रही थी।
‘लेकिन अभी तो वह खिड़की से झांक रहा था।’
‘जाइए, ऊपर जाइए और खुद ही देख लीजिए। आप ‘पॉजिटिव एटिट्यूड’ ले कर आई हो, यह अच्छी बात है। पिछले घर में उसे बीस्ट या बीस्टी (जंगली जानवर) कह कर पुकारा जाता था। शायद इसीलिए वह इस तरह की हरकत करता है। ही हैज बीन बैडली ट्रीटेड एन्ड मिसहँडल्ड।’ उनके चेहरे पर दुःख की छाया उभर आई थी। मिसेज रॉबिन्सन संवेदनशील महिला थीं। वे पूरे मन से बीमा को अपना चुकी थीं।
‘मिसेज रॉबिन्स आप अच्छी और समझदार महिला है। आप निरंतर मेरी सहायता करें। बीमा जरूर एक दिन अन्य बच्चों की तरह सामान्य हो जाएगा। आपसे बीमा ने कितना कुछ सीखा है आखिर उसे बिस्तर में सोना और गिलास से दूध पीना आ गया है।’
‘हां, वो तो है। उसके कान बहुत तेज हैं इस समय वह सीढ़ी पर खड़ा सब कुछ सुन रहा होगा। पर बोलेगा बिल्कुल नहीं। रास्कल, जिद्दी है जिद्दी।’ वह फिर हंसी। इस बार हंसी में मधुरता और ममता अधिक थी क्योंकि वह बीमा के प्रति मेरी रुचि और चिंता से आश्वस्त थीं।
‘बीमा आपके पास कितने दिनों से है?’
‘पिछले तीन महीने से, जब आया था तो दांत काटता था और कागज खाता था। अब वह सब नहीं करता है। बड़ा प्यारा बच्चा है।’ उसने सायास ऊपर की ओर देखते हुए कहा ताकि बीमा सुन सके।
‘आप के बेटे डंकन से इसके कैसे संबंध हैं?’
‘मधुर और स्नेहिल। उसी ने तो इसे बिस्तर पर सोना और गिलास से दूध पीना सिखाया है।’
‘मैं डंकन से मिलना चाहूंगी। मुझे पूरी आशा है यदि हम सब मिल कर सकारात्मक ढंग से काम करें तो बीमा की जिंदगी में ठहराव एवं आश्वस्ति आ जाएगी। और वह अन्य बच्चों की तरह आत्म-विश्वास से युक्त हमारे समाज का सदस्य होगा।’
वह आश्वस्ति से मुस्कराई, ‘वह शर्मीला है।’
‘मुझे मालूम है ऐसे संवेदनशील बच्चे यूं भी बहुत शर्माले होते है।’ मैंने मिसेज राबिन्स के हाथों को एक हल्का स्पर्श दिया।
इसी बीच स्टेला ऊपर कमरे में बीमा को बाहर आने के लिए फुसला रही थी। पर वह सचमुच बिल्ली की तरह हाथ-पांव के बीच सिर को छुपाए बेड के नीचे बैठा अधखुली आंखों से उसे देख रहा था। बाहर आने के कोई लक्षण नहीं थे।
मैंने और मिसेज़ राबिन्स ने भी कोशिश की पर वह बाहर नहीं आया। हमलोग जिगसापजल, तस्वीरों वाली किताबें और जेलीबीन्स का एक पैकेट वहां रख, नीचे उतर कर, चलने लगे तो ऊपर, बीमा खिड़की से झांक रहा था।
दूसरे दिन मिसेज रॉबिन्स का फोन आया। बीमा सारे दिन जिगसॉपज़ल और किताबों से खेलता रहा। शाम को उसने सारी चीजें डंकन को दिखाई। डंकन ने उसे बताया जेली बीन खाया जा सकता है। दोनों ने जेलीबीन खूब स्वाद लेकर खाया।
रात को बीमा किताबें, जिगसॉपजल आदि को सीने से लगाए सोता रहा।
स्कूल आते-जाते मैं अक्सर देखती वह खिड़की से झांक रहा होता है। मुझे देख अब छिपता नहीं है। मुंह दूसरी तरफ घुमा कर आंखों के कोरों से देखने की कोशिश करता है।
हर तीन-चार दिन बाद हमलोग बीमा के लिए नई तस्वीरों वाली किताबें और जिगसॉपजल आदि मिसेज रॉबिन्स को दे आते। बीमा के सो जाने के बाद वे उसकी प्रतिक्रियाएं मुझे फोन पर बतातीं। और मैं प्रगति शीट पर अगली कार्यवाही की योजना बनाती।
हफ्ते भर बाद वह हमसे दूर नीचे सीढ़ियों पर आ कर कुछ छुपता हुआ-सा बैठने लगा था। फिर हमने नोट किया कि वह दरवाजे पर मिसेज रॉबिन्स के पीछे खड़ा हमारी बातें सुनता रहता है। अतः अब हम उसकी बातें न कर उन किताबों के बारे में बातें करते जिन्हें हम उसे दूसरे दिन देना चाहते थे। ताकि उसे लगे कि हम भी वही किताबें पढ़तें हैं और वह भी उनमें वही रुचि और मजे ले सके जैसा हम चाहते है।
दो-तीन दिन मैं स्कूल नहीं जा सकी। फ्लू हो गया था। मिसेज रॉबिन्स ने बताया बीमा सारे दिन मेरा इंतजार करता रहा और दूसरे दिन तो दरवाजा खोल कर बाहर आयरन गेट के पीछे खड़ा बारिश में भीगता रहा।
जिस दिन उसे स्कूल शुरू करना था मिसेज रॉबिन्स और डंकन उसे स्कूल ले कर आए। ग्रे यूनीफार्म में वह बहुत प्यारा लग रहा था।
स्कूल कारीडोर में कोट हैंगर के पास बीमा, मिसेज रॉबिन्स और डंकन के साथ खड़ा बच्चों और कक्षा में हो रहे एक्टीविटीज (तरह-तरह की क्रियाएं) को देखता रहा फिर जाने क्या हुआ कि अचानक वह तीर-सा इस तरह भागा कि हम सब हड़बड़ा गए। वह तो स्कूल गेट बंद था वर्ना वह बाहर सड़क पर भाग जाता।
शायद इतने ढेर सारे बच्चे देख कर उसके अंदर पनपता हुआ आत्म विश्वास अर्रा गया। वह बड़ी देर तक स्कूल गेट के छड़ को पकड़े, हिच्कियां लेता, सुबकता रहा।
अगले तीन-चार दिन वह स्कूल नहीं आया। पर अपने घर के आयरन गेट के पीछे खड़ा हमारा इंतजार करता रहता। सुबह-शाम हमारी खामोश मुलाकातें होती रहीं। मैं उसे ‘हेलो’ करती तो वह मुस्करा कर भाग जाता।
उसके मनोविज्ञान को देखते हुए मैंने स्ट्रेटेजी बदली। एक दिन मैंने बीमा से कहा, ‘बीमा अब मैं तुम्हारे घर नहीं आऊंगी। आप मेरे स्कूल नहीं आते। स्कूल में सब बच्चे तुम्हें याद करते हैं। आपसे दोस्ती करना चाहते हैं।’
और मैं वहीं गेट की दीवार पर सायास बैठ गई। बीमा थोड़ी देर सिर झुका कर गेट में बने मोर के पंखों पर उंगलियां फिराता रहा। फिर गेट खोल कर बाहर आया और मुझसे सट कर चुपचाप खड़ा हो गया। गेट खुलने की आवाज सुन कर मिसेज राबिन्स बाहर आ गई। वह मुझसे यूं कुछ बातें करती रहीं। बीमा मेरे हाथ में पड़ी चूड़ियों से खेलने लगा। अचानक वह मेरी गोद में चढ़ा और दोनों गालों पर गीले चुम्बन दे कर अंदर भाग गया। दोस्ती का वह गीला स्पर्श मुझे अंदर तक भिगो गया। आस्था और विश्वास के अंकुर पनपने लगे। हम दोनों के बीच एक सुखद अनुभूति का सृजन हुआ। मुझमें भी आशाजनक आत्मविश्वास पनपा। मिसेज रॉबिन्स अवाक् खड़ी रहीं। उनकी आंखों ने मानों सपना देखा।
दोस्ती का वह मूक संदेश अपनी बात पूरे प्रभाव के साथ कह गया।
हम दोनों अंदर आए। बीमा को आवाज दी। वह बेड के नीचे छुपा, बंद आंखों की झिर्री से हमें देखता रहा।
अब हमारी मुलाकातें बाहर गेट पर किताबों के आदान-प्रदान के बीच होतीं। वह अक्सर मेरे हाथ से जिगसापजल और किताबें बेसब्री से खींच कर कर अंदर भाग जाता। मैं तरह-तरह के प्रयोग कर रही थी….
अब फिर मैंने बीमा के घर के अंदर जाना बंद कर दिया। उसे बाहर ही किताबें देती हुई अपने घर चली जाती।
एक दिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ बेहद गहरी और सख्त थी। नर्म, गुदाज गर्म हथेली का स्पर्श मेरे दिलो-दिमाग और तन-मन से अनबोले, कुछ कह-सा गया। लगा आज हम-दोनों के बीच एक और नया संचार माध्यम कायम हुआ है जिसने हमें एक अन्य संवेदनात्मक स्तर पर जोड़ दिया है। वह अनबोले ही मुझे खींचते हुए अंदर ले गया और मेरी गोद में बैठ कर किताब पढ़ने का उपक्रम करने लगा। मैंने उस दिन उसे पहली कहानी पढ़ कर सुनाई। वह मेरे साथ शब्दों और वाक्यों पर अपनी उंगलियां फिराता रहा।
रात को जब बीमा सो गया तो मिसेज राबिन्स ने फोन पर बताया बीमा स्कूल यूनिफ़ार्म और अपनी किताबें वगैरह बेड-साइड टेबुल पर रख कर सोया है। शायद उसने स्कूल जाने का मन बना लिया है। आप कल उसे अपने साथ स्कूल लेती जाएं।
मिसेज रॉबिन्स बीमा के प्रगति के लिए हम दोनों के बीच से हटना चाह रही थी। दूसरे दिन बीमा गेट के पास स्कूल बैग लिए मेरा इंतजार कर रहा था। मुझे आते देख कर उसने गेट खोला और उंगली पकड़ कर मेरे साथ स्कूल की ओर चल पड़ा। मिसेज राबिन्स ने उसे ‘बाय’ करा पर उसने पलट कर भी नहीं देखा। उसने संभवतः मुझे अपना दूसरा अभिवावक मान लिया था।
बीमा के बारे में बाक़ी बच्चों को मैं पहले से ही अच्छी तरह तैयार कर चुकी। आते ही बीमा कक्षा में बने खेल-घर में घुस गया और सारे दिन बाहर नहीं निकला। बच्चों को पता चल गया, बीमा को तवज्जुह पसंद नहीं है। अतः वे उसे अकेले ही खेल-घर में खेलने देते। अगर वह खेल-घर में नहीं होता तो जहां कहीं भी मैं होती मेरे बाईं तरफ खड़ा आस-पास होने वाली क्रियाओं को बारीकी से देखता रहता। मुझे समझ आ गया बीमा को पढ़ने-लिखने में रुचि है। और अब वह मानसिक रूप से लिखित चिन्हों को शब्द चित्र में ‘इन्टरप्रेट’ करने को तैयार है।
शुरू-शुरू में जब कभी मैं बच्चों के साथ काम कर रही होती तो वह पास खड़ा पेन, पेंसिल रबर आदि जिस किसी चीज की मुझे जरूरत होती उठा कर दे देता, जैसे मेरी ज़रूरतों की लिस्ट उसने पहले से ही तैयार कर रखी हो।
सुबह अन्य बच्चों के आने से पहले वह स्टेला के साथ टेबुल-चेयर, बुक-कार्ननर, स्टोरी-कार्नर, प्ले-हाउस आदि को नए-नए ढंग से सजाता। पेन्सिल शार्पनिंग, रंग घोलना, ईजल लगाना, पानी और सैंड ट्रे के खिलौनों का चुनाव करना आदि का कार्य-भार उसने अपने ऊपर ले लिया था। बीमा की खूबियां धीरे धीरे बाहर आ रही थीं।
बीमा की कलात्मक रुचि की झलक उसके रंगों के चयन और काम करने के तरीके में उभर कर आई। वह कक्षा के माहौल और परिवेश को जल्द ही समझ गया था। यदि कभी स्टेला को आने में देर हो जाती तो वह अपने-आप अपनी सूझ और समझ से क्लास को सेट करना शुरू कर देता। गजब की याददाश्त थी बीमा की। एक दिन स्टेला ने मजाक में कहा, ‘लगता है बीमा मुझे रिडंडेन्ट कर के मेरी नौकरी खुद ले लेगा।’
मैंने भी हंसते हुए कहा, ‘यह तो सिर्फ इप्तदाए इश्क है होशियार हो जाओ!’
उस दिन बीमा प्ले हाउस में टेडी बेयर को फ्लैश कार्ड दिखा रहा था। कुछ कार्ड वह टेडी को देता कुछ अपने पास रखता। उसने दो अलग-अलग बंडल बनाए। शाम को घर जाने से पहले उसने छोटे बंडल को मेरे सामने खोल कर रख दिया। और उन पर उंगली रख कर मुझसे उनके उच्चारण पूछने लगा। मेरी समझ में आ गया वह पढ़ने के लिए तैयार है।
बीमा को बोलना पसंद नहीं था। वह नहीं बोलेगा। मुझे ही नहीं सभी को मालूम पड़ चुका था किन्तु उसकी सीखने की प्रवृति गजब की तीव्र थी। और उसकी मूक अभिव्यक्ति उससे भी धारदार।
उंगलियों के टेढ़ेपन के कारण बीमा बाएं हथेली की मुट्ठी बना कर उसमे पेंसिल फंसा कर पकड़ता। लिखना उसके लिए बहुत मुश्किल काम था। लेकिन वह जो भी कुछ लिखता, बहुत साफ़ और सही लिखता। जो कुछ अन्य बच्चे चार वाक्य में लिखते उसे वह एक ही वाक्य में लिख कर अभिव्यक्त कर देता। धीरे-धीरे वह बच्चों के साथ मेज़ पर बैठने लगा। पर अभी भी जब कोई उसकी ओर देखता तो वह अपना चेहरा अपनी बांहों में छिपा लेता।
पहले ही महीने में वह फ्लैश कार्ड के सारे शब्द पहचान गया। समर-टर्म खतम होने से पहले उसने प्रथम शब्दावली के पांच पुस्तकों को अच्छी तरह से पढ़ कर याद कर लिया था। अपनी बात को समझाने के लिए उसके पास बहुत सारे तरीके थे। पर नए लोगों को देख कर वह अभी भी प्ले-हाउस में छिप जाता। लिखित अभ्यास के किसी भी प्रश्न के जवाब में वह एक शब्द लिख देता जिससे पूरा अर्थ स्पष्ट हो जाता था। पूरे हिसाब के कार्ड में से वह एक हल निकाल कर रख देता और मुझे पता चल जाता उसे फ़ारमूला समझ आ गया है। स्कूल के सभी बच्चों ने उसकी तमाम कमियों के बावजूद उसे स्वीकार कर लिया था। उसका न बोलना अब हमें उतना नही अखरता क्योंकि वह सारे काम बिना मुखरता के कर डालता था। हम लोगों ने उसकी मूक अभिव्यक्ति को स्वीकार कर लिया था। स्कूल साइकॉलोजिस्ट ने भी उसकी फाइल बंद कर दी थी।
स्कूल में जेनिफर और स्टेला को लेकर कुल दस स्टाफ हैं। बीमा का सबसे परिचय हो चुका था पर वह अभी भी सबसे छुपता फिरता। स्पोर्टस डे के दिन उसने किसी खेल में भाग नहीं लिया। बस स्टेला के साथ मेज के नीचे छुप कर बैठा सबको ऑरेंज जूस के कार्टन और बिस्कुट देता रहा।
गर्मी की छुट्टियों हो गई। मेरी मां बीमार थी मैं भारत चली गई। लौट कर आई तो मिसेज राबिन्स ने बताया, ‘डंकन ने बीमा को स्पेन के समुद्र तट पर तैरना सिखा दिया है और वह काफी अच्छा तैर लेता है।’
क्लास के सभी बच्चे कहीं-न-कहीं हॉली-डेज़ पर गए थे। और वहां से बहुत सारी छोटी-छोटी चीजें समुद्र तट से चुन कर लाए थे, जो मुझे ही नहीं आपस में भी एक-दूसरे को दिखाना चाह रहे थे। अतः हमलोगों ने ऑटम-टर्म प्रोजेक्ट का विषय ‘नेचर एन्ड रिफ्यूज’ रखा। एक वर्क-टॉप पर सारी चीजें नाम पट्टी के साथ रख दी गईं।
इसी बीच बीमा ने पोस्ट-मैंन द्वारा, चिट्ठियों के बंडल के ऊपर से उतार कर फेंके गए रबर-बैड से उछलने वाला गेंद बनाया जो पूरे स्कूल को इतना पसंद आया कि छोटे-बड़े सभी रबर बैंड का गेंद बना कर उससे खेलने लगे।
कई बच्चे हॉली-डेज़ से हमारे लिए नन्हें-नन्हे गिफ्ट ले कर आए थे। बीमा ने भी स्पेन में बहुत सारे शंख, सीप, रंग बिरंगे नन्हें-नन्हें खूबसूरत पत्थर, सी-वीड आदि इकट्ठे किए थे। जिससे उसने हम लोगों के लिए तीन बेहद खूबसूरत छोटे-छोटे कलमदान, प्लास्टिक के पारदर्शी बोतलों पर चिपका कर बनाए थे। जेनिफ़र को वह गिफ्ट इतना पसंद आया कि उसने स्कूल असेम्बली में उसे सारे स्कूल को दिखाया।
अब ‘नेचर एन्ड रिफ्यूज’ पूरे स्कूल का इनटेग्रेटेड, टर्म-टॉपिक बन गया। स्कूल के सारे बच्चे और टीर्चस बीमा और उसके विशेष योग्यता को जान गए। बीमा को पनपने का प्रेरणादायक सरस वातावरण मिल गया। वह धीरे-धीरे सामाजिक प्राणी बनने लगा। यद्यपि उसको बोलते हुए अभी तक किसी ने नहीं सुना था। कई बार बुली (उदंण्ड) लड़कों ने उसकी आवाज सुनने के लिए उसे पीटा भी पर उसके सुबकने के अतिरिक्त रोने की आवाज किसी ने नहीं सुनी।
जेनिफ़र ने उसका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उसे स्कूल का डेपुटी हेड-ब्वाय बना दिया। बीमा को अपने काम की समझ थी। हेड-ब्वाय की उससे अच्छी अन्डरस्टैंडिंग बन गई थी। उसकी मूक प्रवृति उसकी शक्ति बन चुकी थी।
इस बीच इधर कई बातें हुई जिससे मैं मन-ही-मन बीमा के बारे में चिंतित हो उठी थी वह यह कि रिफ्यूज़ प्रॉजेक्ट के एक सब-टॉपिक के अनुसार जब बच्चे अपनी तस्वीर बना कर रंग भर रहे थे तो बीमा बिना चेहरे की गोलाई खींचे आंख, नाक, कान, होठ आदि बना कर उसे एक बड़े से प्रश्न चिन्ह से घेर दिया था। चित्र का शीर्षक उसने दिया, ‘मैं कौन हूं?’ चित्र के नीचे लिखा था ‘मैं कहां से आया हूं?’
इस तस्वीर ने हम सबको चिंता में डाल दिया। एक बार फिर स्कूल साइकॉलोजिस्ट को बुलाया गया। विचार विमर्श हुआ। बहसें हुई। निष्कर्ष निकला बीमा बहुत तेज बुद्धि का बालक है। यह प्रश्न उसका मस्तिष्क बार बार दोहराएगा। इसका हल किसी के पास नहीं है। वह अपने जीवन के सत्य से वाकिफ़ है। अतः उसे स्वयं इस सत्य से समझौता कर खुद को टटोलना और पहचानना होगा। बीमा को संवेदनशील परिवेश जरूर मिला किन्तु साथ ही संवेदनाओं की तीखी और कटीली झाड़ियां भी मिली। जो जाने-अन्जाने उसे घायल और लहुलुहान भी करती। पर समय-समय पर, उसके व्यवहार में आता ठहराव हमें आश्वस्ति भी देता। बीमा के मन का सौंदर्य उसके व्यवहार में झलकता। अधिकांश बच्चों की तरह वह स्वार्थी नहीं था। उसे अपने पूरे परिवेश की जानकारी और चिंता थी।
रिफ्यूज़ प्राजेक्ट पूरा हो चला था। प्रॉजेक्ट के अंतिम दिन पूरा स्कूल, बॉरो काऊंसिल के रिफ्यूज़ ग्राऊंड पर गया। वहां बच्चों ने रिफ्यूज़ के विभिन्न प्रयोग, उपयोग और उसका पुनःचक्रन यानी री-साइकिल होना भी देखा। रिफ्यूज़ प्राजेक्ट के समापन पर बीमा ने प्राजेक्ट पुस्तिका के अंतिम पृष्ट पर लिखा ‘वह बड़ा हो कर ‘रिफ्यूज कलेक्टर’ (कचरे का सदुपयोग करने वाला) बनेगा और अपने आस-पास के वातावरण को स्वछ बनाने में काऊंसिल की मदद करेगा। उसे ‘ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट’ की बातें अक्सर चिंता में डाल देतीं।’
रिफ्यूज़ प्रॉजेक्ट खतम हो जाने के बाद भी बीमा की रुचि रिफ्यूज़ में बनी रही। अगले वर्ष उसने रिफ्यूज़ की कई और अच्छी-अच्छी चीजें बनाई। मर्टन एजुकेशन अथारिटी ने उसे कई पुरस्कार भी दिए। वस्तुतः ‘वाम्बल ऑफ विम्बल्डन’ वातावरण को साफ रखने के लिए टैडी-बीयर वाला गीत और नाटक उसी के दिमाग की उपज थी बाद में किसी और ने उसके विचारों पर काम कर के नाम कमा लिया वह दूसरी बात है……..
हमारे स्कूल से पढ़ाई खतम कर के जब वह क्रैनमा हाई जाने लगा तो बहुत रोया। पर उसे तस्ल्ली यह जान कर हुई कि उसके सभी साथी उसके साथ ही क्रैनमा हाई जा रहे हैं। जेनिफर और स्टेला आदि कई बार उससे मिलने गए। बीमा की नई फार्म टीचर को मैंने उसके प्रगति, स्वभाव, आवश्यकता आदि की रिपोर्ट विस्तार से भेज दी थी। जब कभी वह संशय में होती, मुझसे विचार-विमर्श करने गॉरिंज पार्क आ जाती। बीमा अब काफी सतर्क, सजग और आत्मविश्वास से युक्त हो चला था। मुझसे जब कभी उसकी मुलाक़ात होती तो वह तीन उंगलियों से हैट को हल्का-सा उठा, मुस्करा कर अभिवादन करता।
बीमा के पढ़ने की उम्र उसके वास्तविक उम्र से दो वर्ष आगे थी। लिखने में उसे अभी भी काफ़ी तकलीफ़ होती। उसकी उंगलियों के कई ऑपरेशन हो चुके थे। पर उंगलियां सीधी नहीं हो सकी। बोलना तो उसे कभी पसंद ही नहीं था। मेरे साथ बिताए पूरे तीन साल की अवधि में उसने केवल दो शब्द और एक वाक्य उच्चरित किया था। एक तो तब जब बिल्ली ने हमारे ‘डेन’ में बच्चे दिए थे और मिस्टर पेन उन्हें कहीं फेंकने जा रहा था। वह भागा-भागा आया और मेरे गले से लग कर सुबकते हुआ बोला, ‘प्लीज डोन्ट थ्रो पुसी’। आवाज भारी और गहरी थी। मैं पल भर को अवाक् रही, कानों को विश्वास नहीं हुआ। फिर एक दिन जब बिल्ली का बच्चा खो गया था और वह पुस… पुस कह कर उसे सारे दिन पागलों सा पुकारता रहा। सारे स्कूल में शोर मच गया कि बीमा बोल सकता है और बीमा सारे दिन पुसी के साथ प्ले हाउस में छिपा रहा..
डंकन की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी वह ऑस्ट्रेलिया माइग्रेट कर गया था। बीमा की रुचि को देखते हुए मिसेज राबिन्स ने काऊंसिल से ग्रांट ले कर घर के पीछे बने शेड को रिफ्यूज वर्कशाप में कन्वर्ट करा दिया था।
पिछले कुछ दिनों से डायबीटीज़ के कारण मिसेज राबिन्स को दिखना और सुनना बन्द हो गया था। बीमा पूरे मन से उनकी देख भाल करता और घर के पीछे बने रिफ्यूज-वर्कशॉप में तरह-तरह के खूबसूरत, सजावटी और उपयोगी वस्तुएं बनाकर मर्टन-एबे में रविवार को लगने वाले बाजार में बेच कर अपनी रोजी-रोटी कमाता।
अब वह ‘वार्ड ऑफ़ कोर्ट’ नहीं था बल्कि आत्म विश्वास से युक्त आत्म निर्भर ब्रिटिश समाज का इकाई था। उसे डोल पर जाना या सरकारी सहायता लेना पसंद नहीं था…
इधर तीन-चार साल से मेरी उससे मुलाकात नहीं हो पा रही थी। होम ऑफिस में कुछ और परिवर्तन हुआ। कॉमन मार्केट ने एथनिक माइनॉरिटी के कल्चर और बायलिंगुएलिज्म को बचाए रखने के लिए एजुकेशन डिपार्टमेन्ट को कई तरह की आर्थिक सहायता दी। सेक्शन इलेविन के तहत मेरा अप्वाइंटमेंट एजुकेशन ऑफिस के ट्रेनिंग सेंटर में हो गया। और मेरा एजहिल रोड से आना-जाना बंद-सा हो गया।
अब बीमा से मुलाकात नहीं होती। वह भी अपने कामों में मसरूफ हो गया था, जीविका जो चलानी थी। उस दिन रोजमेरी बता रही थी। बीमा को काऊंसिल में रिफ्यूज कलेक्टर की नौकरी मिल गई है। मैंने डॉक से उसे एक खूबसूरत सा बधाई पत्र भेजा था…
अचानक तीन-चार साल बाद एक रविवार को दोपहर में दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो सामने बीमा बीस्माट खड़ा था। मैंने उसे अंदर आने को कहा तो वह काफी देर झिझकता-सा बाहर खड़ा रहा। बरिश हो रही थी, उसे अंदर आना ही पड़ा।
बीमा का चेहरा कुछ लाल सा हो रहा था। वह कुछ उत्तेजित भी था। शायद उसे कुछ महत्वपूर्ण कहना था। अथवा उसे कोई समस्या थी जिसका हल वह स्वयं नहीं खोज पा रहा था। अपने स्वभावानुसार वह काफ़ी देर चुप-चाप बैठा रहा। फिर दीवार की ओर देखते हुए, भारी और गहरी आवाज़ में बोला,
‘कैन यू विटनेस माई वेडिंग इन कोर्ट ?’
मुझे, मेरे कानों पर विश्वास नहीं हुआ। मैं उसे देखती ही रह गई। कुछ ठहर कर मैंने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘ऑफ़ कोर्स बीमा, विथ ग्रेट प्लेजर, कॉगग्रेचुलेशंन ! बट टेल मी हू इज़ शी? ह्वाट्स हर नेम ? एन्ड व्हयेर डिड यू मीट हर ?
‘अ गर्ल नेमड रिफता ।’
मैंने उसे बहुत प्यार और गहराई से देखा। फिर बात को बढ़ाने और उससे कुछ और सुनने के इरादे से मैंने पूछा, ‘क्या नाम बताया आपने अपनी फियांसी का ?’
‘रिफ़ता !’
‘बड़ा प्यारा नाम है।… कहां मुलाकात हुई तुम्हारी उससे ?……
और जो कुछ उसने नपे तुले शब्दों में बताया, वह और भी एक दिल दहलाने वाला सत्य था….
यही कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत के किसी गाँव में रहने वाले अत्यंत निर्धन मां-बाप की अकेली बेटी रिफ्ता का निकाह दूर-दराज के रिश्तेदारों ने टेलीफोन पर लंदन निवासी सुहेल कासिम से करा दिया। सुहेल इल-लीगल इमिग्रेंट था। वह पहले से ही किसी गोरी लड़की से इंग्लैंड की नागरिकता पाने के लिए शाादी कर चुका था। उसके जुड़वां बच्चे भी थे जो उससे सम्भल नहीं रहे थे। सुहेल को एक नौकरानी की जरूरत महसूस हुई जो बिना पैसे लिए उसके घर तथा बच्चों की देख-भाल कर सके तो उसने टेलीफोन पर निकाह करके उसे लंदन बुला लिया।
रिफ़्ता एक खामोश, शर्मीली और कोमल स्वभाव की लड़की थी। लंदन आने पर यह शहर उसे जादू नगरी-सी लगी, जहां तिलस्म ही तिलस्म था। लंदन की रह-रिहाइश से वह नर्वस और बदहवास हो गई। डर और घबराहट उसका पीछा ही नहीं छोड़ रही थी। उधर ऊपर के कमरों में उसे जाने की इजाजत नही थी। सुहेल ने उसे बता रखा था ऊपर एटिक के कमरे में मकान मालकिन का ऑफिस है जहां उसे आधी आधी रात तक काम करना होता है। अब वह आ गई है तो नीचे का काम और मकान मालकिन के जुड़वा बच्चों की देख-भाल के साथ रसोई का काम वह सम्भाल ले। लंदन कंबखत बड़ी मंहगी जगह है, पैसे के लिए बड़े-बड़े पापड़ बेलने पड़ते है, उसने कहा।
काफी दिनों तक तो रिफत बौखलाई सी चुपचाप डरी, सहमी सी वही सब कुछ करती रहीं जो सुहेल उसे बताता था। ऐसे ही समय गुजरता रहा। अचानक एक दिन उसे एहसास हुआ कि ऊपर के कमरों में जो गोरी रहती है वह सुहेल की बीवी है। ये बच्चे जिनकी देख- भाल वह करती है वे सुहेल और उस गोरी के बच्चे हैं। उसके तन-बदन में चीटियां सी रेंगने लगीं। सुहेल की बीवी आराम-तलब है। घर के काम उससे संभलते नहीं हैं। एक नौकरानी की जरूरत थी सो सुहेल ने बड़ी आसानी से टेलीफ़ोन पर निक़ाह का झांसा दे कर उसे इंग्लैण्ड बुला लिया। उसे अपने मां-बाप और रिश्तेदारों पर बेइंतहा गुस्सा आया। वह बिलावजह छली गई। कमीने सुहेल ने सबसे झूठ बोला है। वह सिर पटक-पटक कर, जार- जार रोती रही। फरेब… फरेब, रिफत को मतली आने लगी। बड़ी देर तक वह हाथ-पांव पटकती रही। उसके दिलो-दिमाग पर ऐसी चोटें लगी कि वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी। एक दिन सुहेल को अकेले पा, उसने उसके बाहों पर काट खाया फिर उसके छाती पर मुक्के मारती हुई, खुदा का वास्ता देती उसने, उसे पुलिस के पास जाने की धमकी दी। सुहेल एक दम बौखला गया। उसने आव-देखा-न-ताव, जड़ों से उसके बाल खींचते हुए, जवाब में लात और घूंसे से मारते-मारते जब थक गया तो उसके मुंह पर टेप लगा कर उसे बाक्स रूम में बंद कर दिया। रिफत दीवार से सिर मारती हुई बेहोश हो गई।
इसी तरह आए दिन के मार-पीट, भुखमरी, शारीरिक और मानसिक संत्रास से अधपगलाई वह धीरे-धीरे कमजोर होती, अपना संतुलन और वजूद खोती रही।
फिर बधवासी की हालत में, लाचार एक दिन वह खिड़की से कूद कर सड़क पर आ गई। उसे नहीं पता था, वह कहां है? कौन है? कहां जा रही है? रात अंधेरों, और तूफानी थी। रास्ता अन्जान। कहीं कोई मंजिल नहीं थी। वह सिर्फ एक झीनी नाइटी पहने, नंगे पांव, बारिश में भीगती, बेतहाशा भागती, मोटर वे ए ट्वेंटी थ्री पर पहुंची। कब और कैसे पहुंची ? उसे नहीं मालूम था।
उसी तूफ़ानी अंधेरी रात में, सड़क पर भागती किसी आकृति को देखकर मर्टन काऊंसिल के लॉरी ड्राइवर बीमा बीस्माट ने अचानक तेजी से ब्रेक मारा और वह बेहोश लड़की रिफत मौत से खेलती, लॉरी के भारी पहियों के नीचे आते-आते बची…बताया उसने।
मेरी आंखों के सामने, बीस वर्ष पूर्व लिखे रिपोर्ट की वे भयंकर पक्तियां चित्रित हो उठीं जिसमें झबरा-सा, घुंघराले जिंजर बालों वाला चार वर्षीय बालक, अपनी जन्मदायिनी को दर्द भरे चीखों के साथ, लहु-लुहान, छटपटाते दम तोड़ते हुए देख रहा है…पूछने पर वह अपना नाम तक न बता सका था…निर्दोष, दहशतजदा आँसुओं के साथ आवाज भी खो चुका था… वही बीमा आज एक दहशतजदा, रिफ्यूजी लड़की को आवाज़ दे रहा है…. सुरक्षा दे रहा है। बीमा ने केवल अपना नाम ही सार्थक नही किया उसने समस्त संसार को मानवता का महान संदेश दिया है। मेरा मन बीमा के प्रति सदाशयता और गर्व से भर उठा……
*** *** ***