
76 वाँ गणतंत्र
मेरा देश वह साइकिल है
जिसे 540 गण चला रहे हैं
300 चला रहे हैं दिन रात पैडल
बाकी मिलकर ब्रेक लगा रहे हैं।
कोई दाहिनी ब्रेक तो कोई वाम
कोई ब्रेक की तार खींचकर तन गया है
कोई साइकिल के आगे जम गया है
कोई पहिए में डंडा फँसाए खड़ा है
किसी ने ताला लगा दिया है
और चाबी छिपाए खड़ा है!
यहाँ हर दंगली
अपनी मनमानी को स्वतंत्र है
जी हाँ
यह मेरे देश का
76वाँ गणतंत्र है।
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– डॉ. अशोक बत्रा