संज्ञा बोली सर्वनाम से

न जाने क्यों
संज्ञा और सर्वनाम में
तकरार हो गई
सर्वनाम बना हुआ था ढाल
और संज्ञा तलवार हो गई!

वो सर्वनाम से बोली —
अरे मेरे चाकर!
मेरे आश्रित!
मेरे पालतू!
और फालतू!
मेरी उतरन!
मेरी स्टेपनी!
बड़ा नाशुक्रा है तू !

मेरी झूठन पर पलता है
फिर भी हरदम
मैं मैं करता है
मेरा तो नाम भी नहीं लेता है!

सर्वनाम बोला —
दीदी! मैं तेरा ही तो काम करता हूँ!
जो भी करता हूँ
तेरे लिए करता हूँ
कभी तू, कभी तुम
तो कभी आप कहता हूँ!
जो भी कहता हूँ
आपके लिए कहता हूँ!

पर गुस्से में तमतमाई
और आज अपनी पर आई
संज्ञा होश में न आई!

बोली — तुझे मैं बताऊँगी!
तेरी अक्ल ठिकाने पर लगाऊँगी।
अब से अपने सारे काम
खुद निपटाऊँगी!
जब मरेगा भूखा
तो तेरी औकात बताऊँगी!

संज्ञा ने बाहें चढ़ाईं
पल्लू समेटा
और मोर्चा संभाल लिया
पर सँभालते ही
कोहराम हो गया
वाक्यों की सड़कों पर
मीलों लम्बा जाम हो गया।

आदेश पारित करना था —
हम सारे संज्ञा शब्द
‘हम सारे’ की जगह
फज़लू, फत्तू, दीनू, मीनू हज़ारों नाम लिखने पड़े
एक बार नहीं
बीस बीस बार लिखने पड़े।
वाक्य में दस बार मुसद्दीलाल आया
दसों बार मुसद्दीलाल लिखना पड़ा
खुद मुसद्दी अपने नाम से उकता गया
वह संज्ञा को घूरने लगा, झल्ला गया।

सबसे बुरी तो बनी ग़ज़लकारों के साथ
सर्वनाम उनकी ढाल था
संज्ञा ने वह ढाल तोड़ दी
गुपचुप-गुपचुप की गर्दन मरोड़ दी!

ये सर्वनाम ही थे
जिनकी आड़ में
ग़ज़लकार गज़ब ढा जाते थे
कविता लिखते थे पड़ोसन के हुस्न पर
और वाह वाह बीवी से पा जाते थे।
संज्ञा ने वह मुखौटा नोच लिया
सर्वनाम को वहीं दबोच लिया।

लिखना था —
वो आए हमारे घर
लिखना पड़ा —
चमेली आई मज़नू के घर
मज़नू तो अब लिया मर!
न चमेली घर आई
न मज़नू मुस्कराया
समझ लो, अँधेर हो गया
पत्नी चामुंडा ने इतना धुना
कि वहीं ढेर हो गया।

संज्ञा का माथा ठनठनाया!
वह बदहवास हो गई
सर्वनाम के पाँव पकड़ लिए
उसकी दास हो गई।
बोली — तू ही ब्रह्मा, तू ही विष्णु, तू ही महेश है
सर्वनाम बोला —
दीदी! क्या बात है, क्या क्लेश है?
संज्ञा बोलती रही —
तुम्हीं विघ्नहर्ता, क्लेश हर्ता
सर्वनाम बोला —
मुझे इस झूठी स्तुति में न फँसाओ!
बात क्या है, यह बताओ!
क्या है, तुम्हारे समस्त क्लेश का कारण!
आसमान से आवाज़ आई —
नारायण नारायण!

*****

– डॉ. अशोक बत्रा

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