चलो… मेरे पुनर्जन्म तक

तुमने मारा है मेरे अन्तर-पशु को
डुबा कर अनन्त में बहुत गहरे
बांध कर द्रवित दृगों में
लगाकर पलकों के पहरे…
तुमने मारा है मेरे अन्तर-पशु को।
तुमने किया है, प्रिय!
अकस्मात यह जो छल
नव निर्मित निर्बल मन
हुआ है विकल।
सनो! अब वरो दंड
लेकर शपथ अखंड
चलो अब साथ-साथ, थाम हाथ
मेरे ही अनवरत
बचाकर अन्य पशुओं से
खड़े जो थाह में छुपकर
पकड़ने को मुझे तत्पर।
छुपा कर तड़ित घन वन से
अड़े राह में दुस्तर
जकड़ने को मुझे तत्पर।
जगाकर लौ निशा तक…
निभाकर अंध तम से ऊषा तक…
चलो!
मेरे मनुष्य होने तक
चलो!
मेरे पुनर्जन्म तक।।

*****

© विनयशील चतुर्वेदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »