स्व-पथ चुनना है

जब-जब प्रहार हुए
कठोरतर होता रहा
और
अन्दर का पहाड़
दरकता रहा
भीत सम प्रतिपल।

जब-जब फुहार पड़ी नम
संकुचित होता रहा
और
अन्दर का लावा
पिघलता रहा
मोम सम प्रतिपल।
प्रहार और फुहार
दोनों लिए नवजीवन अंश
रीते घट भरना है
स्व-पथ चुनना है…..
टूट कर बिख़रते हुए भी
जल कर पिघलते हुए भी।
स्व-पथ चुनना है।।

*****

© विनयशील चतुर्वेदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »