Category: मानोशी चटर्जी

पागल मन यूँ ही उदास है – (कविता)

पागल मन यूँ ही उदास है पागल मन यूँ ही उदास है,कितना सुन्दर आसपास है। काले बादल के पीछे सेझाँक रही इक किरण सुनहरी,सारे दिन की असह जलन केबाद गरजती…

मगर उपवन मिला – (कविता)

मगर उपवन मिला कुछ मिले काँटे मगर उपवन मिला,क्या यही कम है कि यह जीवन मिला। घोर रातें अश्रु बन कर बह गईं,स्वप्न की अट्टालिकायें ढह गईं,खोजता बुनता बिखरते तंतु…

देवदार के पेड़ – (कविता)

देवदार के पेड़ शीश झुका कर ज्यों रोये हैंदेवदार के पेड़ बादल के घर ताक-झाँककरने की उनको डाँट पड़ी हैभरी हुई पानी की मटकीसर से टकरा फूट पड़ी है सूरज…

तोड़ कर सब वर्जनाएँ – (कविता)

तोड़ कर सब वर्जनाएँ तोड़ कर सब वर्जनाएँस्वप्न सारे जीत लेंगेएक दिन हम॥ राह में जो धूल कीआँधी उड़ी,क्या पता क्योंसमय की धारा मुड़ी,मंज़िलों के रास्ते भीथे ख़फ़ा,साथ में फिर…

स्पेस

“बड़े दुख से गुज़री हो तुम, है न? सच बड़ा कठिन समय रहा होगा”। उसे नहीं चाहिये थी सहानुभूति । “साइको थेरैपी” के लिये कई जगह जा चुकी थी वह।…

मानोशी चटर्जी

मानोशी चटर्जी जन्म-स्थान : कोरबा वर्तमान निवास : टोरोंटो, कनाडा शिक्षा : स्नातकोत्तर रसायन शास्त्र, संगीत विशारद, बी.एड. प्रकाशित रचनाएँ : काव्यसंकलन ’उन्मेष’, ’समुद्र पार ग़ज़लें’ में ग़ज़लें संकलित, ‘हाइकु…

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