
पंकज शर्मा, अमेरिका
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यह दौड़ती भागती सड़कें
दिन रात यह जागती सड़कें
किसी को मंज़िल तक पहुंचाएं
किसी को यूँ ही भटकती सड़कें
कहीं पे कन्धा दे अर्थी को
कहीं पे ढोल बजाती सड़कें
कभी तो जीवन की रेखाएं
कभी मौत बन आती सड़कें
कहीं पे मेले खुशियों के तो
कहीं मनाती मातम सड़कें
जीवन की ज़ंजीर पिरोतीं
धागे सी कभी लगती सड़कें
कभी वस्ल के लब यह चूमें
कभी फासले बन जाती सड़कें
कभी पुराना चशमां लगतीं
कभी नज़र नयी दौडातीं सड़कें
कभी खामोश नज़ारे जैसीं
कहीं पे शोर मचाती सड़कें
नयी नवेली दुल्हन जैसी
बलखाती इठलाती सड़के
कभी हैं बुढ़िया दादी जैसीं
घूंघट में शर्माती सड़कें
एक अबूझ पहेली जैसीं
मुझे समझ कहाँ आती सड़कें
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