संगीता चौबे पंखुड़ी, कुवैत

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लेखनी में धार हो

वीर रस की हो प्रचुरता, ओज का अंगार हो।
हर सदी की माँग है यह, लेखनी में धार हो ।।

लिख सके यदि लेखनी कुछ, तो सदा सच ही लिखे।
प्रेरणा दे जो सभी को, वह जगत प्रेरक दिखे।
जो विषमता की कड़ी को, अक्षरों से तोड़ दे।
प्रेम की गंगा बहा कर, शब्द से उर जोड़ दे।
दासता स्वीकार करना, नीतियों के पार हो।
हर सदी की माँग है यह, लेखनी में धार हो ।।

हो कहीं अवमानना तो, टिप्पणी तत्काल दे।
कुछ प्रखर सी पंक्तियों से, तीव्र सा भूचाल दे।
खौल दे सबका लहू जो, इक सुलगता ताप हो।
युग युगांतर तक सभी मन, में बसी इक छाप हो।
भाव को अभिव्यक्त करने,की सदा ललकार हो।
हर सदी की माँग है यह, लेखनी में धार हो ।।

वेदना उपजे कभी तो, सांत्वना मन रोंप दे।
अश्रु की सीपी स्वयं धर, सीपि सुख का सौंप दे।
हो द्रवित पर पीर से जग,कुछ मनुज कल्याण हो।
आत्म अवलोकन करें सब, देश हित में प्राण हो।
मूढ़ परिपाटी मिटा दे, रूढ़ि का प्रतिकार हो।
हर सदी की माँग है यह, लेखनी में धार हो ।।

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