
पंकज शर्मा, अमेरिका
1.
कभी तो पूछो मुझसे भी ज़िंदा हूँ या मर गया
जो ज़िंदा है वो मैं नहीं मैं ही हूँ जो मर गया
एक अधूरा रस्ता था न महफ़िल थी न मंज़िल थी
अधरों पे मुस्कान लिए था कोई मुसाफिर घर गया
तन्हाईआं आग़ाज़ मेरा थीं तन्हाईआं अंजाम मेरा
तनहा सफर मे कोई मुसाफिर तन्हाई में गुज़र गया
यूँ तो न था सपने न थे मेरी भी इन आँखों में
रात के ख्वाबों का दरिया दिन के ख्वाबों में उतर गया
बस एक ही लम्हा थे मेरा वो मेरा था मालूम नहीं
मालूम नहीं में था भी कहीं बस आया और गुज़र गया
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2.
कुछ फरियाद तो सुन मौला
दिल ए नाशाद को सुन मौला
तेरे धरती चाँद सितारे
मेरी साँसों की धुन मौला
लाख इनायत दी हैं तूने
कभी मुझको भी चुन मौला
या मंज़िल की राह बता दे
नया रस्ता या बुन मौला
तू पतवार है तू ही कश्ती
तू दरिया का रुख मौला
मेरा मुझ में कुछ भी नहीं तो
मुझमें खुद को सुन मौला
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3.
गर है कहीं तो आकर जलवा दिखा मुझे
गर है नहीं तो निजात वहम से दिला मुझे
तेरे फरेब ने ताउम्र परेशां मुझे रखा
मेरे यकीन से भी ने कुछ हासिल हुआ मुझे
एक बिसात सी बिछी है तेरे इश्क़ की जहाँ में
तेरे दर का ही न बस कहीं पता चला मुझे
ज़िन्दगी जो तेरी थी तो में कहाँ पे था
किसका हिसाब दूँ तुझे अब तू ही बता मुझे
यह दैर ओ हरम है क्या यह मैखाने हैं किसके
ए साकी कहीं पिला लेकिन पिला मुझे
हाथों की लकीरें भी अब चेहरे पे नज़र आतीं हैं
लेकिन इस सफर में आखिर क्या मिला मुझे
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