चाहती हूँ आज देना
प्यार का उपहार जग को।
मुग्ध सपनों की बगिया से, तोड़ मैं कुछ फूल लाई
भावनाओं के भवन से, रस भरे वह मधु गान लाई।
कंठ से कल कोकिला के, मैं मधुर संगीत लेकर
विश्व में मधुमास की, मधुमय चपल मुस्कान लेकर
परहित से मिले सदा आनन्द देवताओं के सुखों का
इन्द्रधनुषी आँचल में हो अभिलाषित स्वर्ग धरा का।
चाहती हूँ आज देना
स्वर्ग का अधिकार जग को।।
चाहती हूँ मैं क्षितिज के पार का संसार देखूँ
शब्द पर आरूढ़ होकर शून्य का आधार देखूँ।
चाहती हूँ नग्न तन लिये, जो खड़े कर फैलाए राह पर
मिटाये स्वयम् शापमय जीवन नारायण के इंगित पर
चाहती हूँ अंतिम प्रहर पर आदि का सुखद आरम्भ देखूँ
नव सृष्टि रचना की साक्ष्य बनती प्रलय का ढलान देखूँ
चाहती हूँ आज देना
प्यार का उपहार जग को।।
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-अनीता बरार