नीना ने गणेश जी की मूर्ति के सामने आरती का दिया रखा और श्रृद्धा से सिर झुकाकर प्रार्थना की।
वहीं साथ ही क्राइस्ट की मूर्ति भी थी, उसके सामने भी नतमस्तक होकर हाथ जोड़ दिए।
उसके पति एंटनी डिसूजा का परिवार उन कुछ एंगलो इंडियनस् का था जो 50 के दशक में आस्ट्रेलिया आकर बस गए थे। एंटनी से नीना की मुलाकात एक शो के दौरान हुई थी और शीघ्र ही दोनो ने शादी भी कर ली थी। धर्म के लेकर कोई बंधन नहीं था इसीलिए घर में क्राइस्ट के साथ-साथ गणेश की प्रतिमा के प्रति एक अटूट आस्था की परम्परा थी।
प्रार्थना पूरी करके उसने घड़ी की तरफ देखा। सात बज चुके थे। नीना ने मुस्कराते हुए म्यूजिक सिस्टम पर प्ले बटन दबाया। उसके पसंदीदा संगीत की लय हवा में गूँजने लगी। नीना को उस संगीत के साथ गुनगुनाते देखकर कोई भी जान सकता था कि वह बहुत खुश थी। बहुत ही कम मौके आते थे जब वह इस तरह खुश होती थी और यह उनमें से एक था। उसके बेटे आर्ची की वकालत की पढ़ाई खत्म होने वाली थी, और उसे एक बहुत बड़े वकील के साथ नौकरी की प्लेसमेंट भी मिल गई थी।
चूँकि उनका घर मुख्य शहर से दूर, समुद्री किनारे के पास बने एक सबअर्ब में था और यूनीवर्सिटी काफी दूर थी इसीलिए आर्ची वकालत की पढ़ाई के लिए वहीं यूनीवर्सिटी के पास में एक कमरा ले कर रहता था। कभी कभार जब दो चार दिन की छुट्टी आती तो लोकल ट्रेन में करीब डेढ़ घंटे का सफर तय करके घर आता। आज भी वह कुछ दिनों के लिए घर आ रहा था। इसके अलावा अगले दिन उसकी छोटी बहन महक का जन्मदिन भी था।
नीना की बेटी महक पाँच साल की और आर्ची नौ वर्ष का था जब एंटनी की एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई थी। वह आस्ट्रेलिया में एक नामी वकील थे। यह नियति का अनोखा ही खेल था कि एंटनी डिसूजा की मृत्यु से एक साल पहले, एक ऐसी ही सड़क दुर्घटना में उसके माँ बाप का भी निधन हो गया था।
चूँकि एंटनी अकेली संतान था तो अब उस परिवार से जुड़ा और कोई भी नहीं था और इधर नीना का परिवार या तो भारत में था या अमरीका में। अपने परिवार के बार बार कहने के बाबजूद भी नीना को एंटनी के घर से दूर होना मंजूर नहीं था। उसने हिम्मत न हारते हुए दोनों बच्चों को अकेला ही संभाला और एक चट्टान की तरह अपने जीवन में आये इस तूफान को झेला।
फेमिली रूम में बीथोविन की सरगम गूँज रही थी। नीना को याद आया कि कैसे आर्ची सिर्फ आठ महीने का ही था तब से उसे इस धुन से लगाव हो गया था। कुछ समय लगा था उन्हें यह समझने में कि शिशु आर्ची क्यों हर रोज शाम को जोर जोर से रोता था और फिर कैसे इसी सरगम को सुनने के बाद चुप हो जाता था। इसके बाद, अक्सर एंटनी और नीना दोनों ही आर्ची को गोद में बिठाकर, प्यानो पर इस धुन को बजाते थे। धीरे धीरे बालक आर्ची भी अपने छोटे छोटे हाथों से इसे बजाना सीख गया था।
कितने सालों तक शाम को प्यानो पर इसी धुन को छेड़ने का सिलसिला चलता रहा था। एंटनी को लगता था कि आर्ची बड़ा होकर शायद एक नामी प्यानोवादक बनेगा। लेकिन एंटनी की मृत्यु के बाद न तो नीना और न ही आर्ची ने प्यानो को हाथ लगाया था। और आर्ची ने अपना मन बना लिया था कि वह अपने पिता की तरह एक नामी वकील बनेगा।
आज बरसों बाद नीना ने प्यानो तो नहीं खोला लेकिन उसी धुन को सुनने का दिल कर आया था।
प्यानो पर रक्खे सुनहरे फ्रेम में एंटनी की तसवीर थी, जिस पर एक छोटी सी चन्दन की माला महक रही थी।
बड़े ही फिल्मी अंदाज़ में एंटनी कहा करते थे—
“देखो नीना, अगर मैं न रहूँ तो मेरी फोटो को इस प्यानो पर सजा देना और उस पर माला चन्दन की लगाना। कहीं से भी दो चार एक साथ ख़रीद लेना। यार, बड़ा खराब लगता है जब लोगों के घर फ्रेम पर मुरझाये या नकली फूलों की माला देखता हूँ। ऐसा लगता है कि मरने का मजा भी किरकिरा हो गया हो।”
सुनते ही नीना चुहुँक कर एंटनी के मुँह पर हाथ रखती और आँखों में आँसु भर कर दोबारा ऐसा कुछ न कहने की कसमें दिलाती।
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नीना को लगा एंटनी उस माला के बीच में से उसे देख कर मुस्कुरा रहे हैं। वह जानती थी कि आज एंटनी को उस पर बहुत गर्व होगा। क्यों न हो—बेटा वकील बन गया है और यह भी तय हो गया है कि अगले महीने से वह वापस घर शिफ्ट हो जायेगा। महक को भाई का साथ, एक दोस्त मिल जायेगा। जब भी महक को अपने आर्ट प्रोजेक्टस् पर एवार्ड मिलते थे, उसकी दबी दबी चाहना होती कि काश भाई भी साथ होता। आर्ची चाहे उससे बस चार साल ही बड़ा था लेकिन महक के लिए तो वह जैसे एक पिता का रोल भी निभाता था। आज भी महक एक ट्रॉफी जीत कर लायी है और उसने इसे सामने कॉफी टेबल पर ही रक्खा है।
नीना को महक के सख्त निर्देश याद आ गए,
‘माँ अब अपने सफाई अभियान में मेरी ट्रॉफी कहीं यहाँ से नहीं हटा दीजिएगा। मैं चाहती हूँ कि आर्ची भैया आते ही सबसे पहले मेरी इस ट्रॉफी को ही देखे।’
महक की वह बात याद आते ही उसकी आँखे नम हो गई।
तीन साल की थी महक तब से ही उसे अपनी टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं से तसवीरें बनाने का शौक था। एंटनी ने उसके भीतर छिपे चित्रकार को तभी पहचान लिया था और उसे आर्ट क्लास में दाखिला दिलाया था। एंटनी को यकीन था कि महक एक दिन कला में अपना नाम रोशन करेगी। आर्ट के लिए महक का शौक भी कभी कम नहीं हुआ। समय के साथ साथ उसकी कला में निखार आता जा रहा था और वह लगातार अलग अलग प्रतियोगिताएं जीत रही थी।
‘देखना एक दिन आपकी बेटी बहुत बड़ी आर्टिस्ट बनेगी।’ और भावावेश में बह कर नीना ने प्यानो पर से एंटनी की तसवीर को उठाकर सीने से लगा लिया और चूमने लगी।
अचानक तेज संगीत की आवाज ने उसके विचारों पर जैसे ब्रेक लगा दी।
महक के कमरे से इस जोशीले संगीत की आवाज आ रही थी। फोटो वापस रख कर मुड़ी तो संगीत की धुन पर नाचती हुई महक बाहर आ गई थी। उसी तरह नाचते हुए वह भगवान गणेश की मूर्ति के सामने जलते दिए को नमन करके खुशी के मारे नीना के ऊपर लगभग झूल गई।
“माँ, हो सकता है कि भैया मेरे लिए बर्थडे गिफ्ट, एक छोटी सी गणेश जी की मूर्ति ले आयें। उन्होंने बताया था न कि एक नयी इंडियन दुकान खुली है और वहाँ चाँदी या किसी मैंटल की मूर्तियाँ मिलती हैं। अगर वह ले आये तो मैं उसे अपने कमरे में अपनी स्टडी टेबल पर रखूँगी। मैंने एक बार उन्हें कहा भी था।”
“तो यह खुशी भाई के आने की है, जन्मदिन की है या फिर इस उम्मीद की कि आर्ची गिफ्ट लायेगा?”
“सब की”… और महक ने नीना को कसकर पकड़ कर उठा लिया और चकरी की तरह घुमाना शुरु कर दिया और उधर नीना घबड़ाहट और हँसी के बीच उसे फौरन नीचे उतारने की गुहार करने लगी, “महक नहीं… नीचे उतारो… बस करो बस…”
और फिर कुछ समय तक हवा में दोनों की हँसी गूँजती रही।
…
दीवार पर लगी घड़ी ने आठ बजाए।
“इस समय तक आर्ची को आ जाना चाहिए था,” नीना ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा।
“और अगर कहीं पिछली बार की तरह भैया की ट्रेन छूटी होगी, तो समझो इंतजार अगले दो घंटे बाद की ट्रेन का या फिर कल सुबह तक।”
और फिर नीना की नकल उतारते हुए बोली, “ओ मेरा बेटा… बेचारे को भूख भी लगी होगी”
महक को नीना को छेड़ने में मजा आ रहा था।
“चल शैतान… लेकिन … ”
नीना के कुछ और बोलने से पहले ही, कोई जोर-जोर से दरवाजे को पीट रहा था और साथ ही जल्दी जल्दी डोर-बैल भी बजा रहा था।।
और महक खुशी से कूदते हुए दरवाजा खोलने के लिए भागी ।
“आ गए …भाई….” पीछे पीछे नीना भी तेजी से बढ़ी।
जैसे ही महक ने दरवाजा खोला, पलक झपकते ही एक युवा लड़का उसे एक तरफ धकेलते हुए अंदर आया और तेजी से दरवाजा बंद करते हुए उसने एक हाथ से महक का मुँह कस कर बंद कर दिया। बदहवास नीना ने महक को पकड़ना चाहा लेकिन इससे पहले ही उस लड़के ने दूसरे हाथ से नीना पर भी काबू पा लिया और जोर से चुप रहने को कहा।
बिजली की तेजी से वह दोनों को लगभग घसीटते हुए अब तक साथ लगे लॉज रूम के हिस्से तक भी आ आया था।
लड़के के कपड़े फटे हुए थे, उसे कुछ चोटे भी लगी थी, इधर-उधर से खून भी बह रहा था।
नीना और महक दोनों की जैसे बोलती बंद हो गई थी। सब कुछ जैसे फिल्म के किसी सीन की तरह होता लग रहा था।
महक उस अजनबी के हाथों में ही लगभग बेहोश होते होते निढ़ाल सी गिरने लगी। बदहवासी में नीना ने उसे सम्भालने का प्रयास किया और उसी क्षण यह अजनबी लड़का भी जो शायद बूरी तरह थक चुका था, लड़खड़ाते हुए सोफे का सहारा लेते लेते जमीन पर नीचे बैठ गया।
महक और नीना दोनों ही उसके हाथ से छूट गयीं। स्वयम् को गिरने से बचाते हुए नीना ने महक को भी किसी तरह संभाला। इधर यह लड़का अस्पष्ट शब्दों में बुदबुदा रहा था, …
प्लीज हेल्प मी…नॉट हार्म यू… हेल्प…प्लीज हेल्प…
और धीरे धीरे उसकी आँखे भी बंद होने लगी।
भयभीत महक अपनी माँ से लिपटी हुई थी। नीना काँपते हाथों से बार बार उसे चूम कर आश्वस्त करने का प्रयास कर रही थी।
हिम्मत करके महक ने अपने फोन को उठाने की कोशिश की जो उसके हाथ से उस हड़बड़ाहट में वहीं पास में नीचे गिर गया था लेकिन, बेहोशी जैसी हालत में होते हुए भी उस अजनबी ने फिर से उसके हाथ को पकड़ लिया। लेकिन उसकी पकड़ मजबूत नहीं थी। महक ने चिल्लाते हुए किसी तरह से अपने हाथ को छुड़ा लिया और नीना से कस कर लिपट गई।
वह अजनबी लड़का और भी निढ़ाल होता जा रहा था। धीरे धीरे वह बोल रहा था,
“आई… आई एम करन… दे विल किल मी… सेव मी … प्लीज हेल्प। सेव मी… सेव …”
और उसकी आँखें बन्द होती जा रहीं थी।
नीना को हालात समझने और अपनी साँसों पर काबू पाने में कुछ पल लगे।
लड़के को निढ़ाल होते देख कर नीना में कुछ हिम्मत आने लगी थी। उधर महक भी अपने को संभाल पा रही थी। नीना ने महक में हिम्मत बंधाई।
उस लड़के के नाम से नीना ने समझ लिया था कि वह भारतीय मूल का है। उसे लगा कि इस अजनबी लड़के से फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं है। शायद यह लड़का किसी मुसीबत में फँस गया है और उसे मदद चाहिए।
कंधे पर लगे उसके बैक-पैक पर भी मिट्टी लगी हुई थी। स्पष्ट था कि कोई बड़ी हाथापाई हुई थी।
वह उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी।
नीना ने उसके माथे पर प्यार से हाथ फेरा।और उसे तसल्ली देने लगी कि वह सुरक्षित जगह पर है और उसे डरने की कोई जरूरत नहीं है।
“यू आर सेफ … डोंट वरी…”
महक ने अविश्वास से माँ को देखा। उसने फुसफुसाते हुए कहा, “माँ! डोंट, यह सेफ नहीं है। पता नहीं कौन है और हमें इस पर ट्रस्ट नहीं करना चाहिए। रिस्की हो सकता है।”
लेकिन नीना ने उसे चुप रह कर मदद करने का इशारा किया।
वह लड़का बराबर दर्द में आहें भर रहा था और क्षमा माँगने की भी कोशिश कर रहा था। नीना ने उसको कुछ आश्वस्त करते हुए, महक की मदद से किसी तरह सोफे पर बिठाया।
सोफे पर बैठते ही उसका सिर एक तरफ झुक गया।
उसकी बंद आँखों के सामने कुछ समय पहले हुई घटना की गडमड गडमड सी तसवीरें घूम रही थी और कानों में तरह तरह की आवाजें गूँज रही थीं।
“… अरे छोड़ो, जाने दो अब, इसे और मत मारो… “
“… प्लीज छोड़ दो मुझे… मैं नहीं कर सकता…प्लीज”
“… हमारा पैसा वापस करो… जैसा मैं कहता हूं वैसा करो!”
“… मेरे पास पैसा नहीं है। आई प्रोमिस… अब यह ड्रगस् नहीं…प्लीज…”
“… छोड़ दो यार इसे… कुछ समय दे दो…”
“… कैसे छोड़ूँ … इसकी भरपायी कौन करेगा तेरा बाप?”
“…ओय… बाप पर नहीं जाना … “
और सब तरफ से वह लोग आपस में गुत्थमगूत्था हो गए थे।
अर्धबेहोशी की हालत में करन बड़बड़ाता जा रहा था, “… प्लीज छोड़ दो मुझे… मैं नहीं कर सकता…प्लीज” और फिर जैसे वह उठने की कोशिश करते हुए चारों ओर अपने हाथों को फेंकने लगा। नीना ने कस कर उसके कन्धों को पकड़ कर शांत करने की कोशिश की। करन ने नीना का हाथ पकड़ लिया और वह एक टक नजर से देख रहा था जैसे कहीं मीलों दूर हो,
“मुझे जाने दो। … मैं अब नहीं बेच सकता … प्लीज लेट मी गो…”
और वह फिर से निढ़ाल होने लगा। लाउंज पर उसका सिर टिक गया। उसकी आँखें बंद थी और वह नीना के बाएँ हाथ को कस कर पकड़े हुए था। उधर महक घबरा कर माँ से चिपकी हुई थी। फुसफुसाते हुए उसने कहा, “माँ, यह ड्रग डीलर लगता है …”
चिंतित नीना ने सहमति में सिर हिला कर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन करन की पकड़ काफी पक्की थी।
महक ने फिर से फुसफुसाते हुए कहा, “माँ पुलिस को बुलाना चाहिए।”
करन इनकी बातें कुछ-कुछ सुन पा रहा था। उसने दूसरा हाथ उठा कर ‘नहीं’ कहते हुए आह भरी।
नीना ने महक को चुप रहने के लिए इशारा किया।
नीना धीरे-धीरे करन के सर को सहला रही थी। नीना के कोमल स्पर्श से करन को जैसे अपनी माँ का एहसास होने लगा। वह बड़बड़ाने लगा,
“मम… मम… आई नीड यू… हेल्प… “
… … …
कुछ समय के बाद करन थोड़ा संभल गया था। चाहे उसे काफी कमजोरी लग रही थी लेकिन वह उठ कर सीधा बैठ गया। बहुत ही कमजोर आवाज में बताने लगा,
“… उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की … उनके पास छुरा था… घोंप दिया लेकिन मैं भागा
आप… प्लीज मेरी मदद करें।”
करन धीरे धीरे अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा था,
“ट्रस्ट मी, मैंने ड्रग्स नहीं की … पहले की थी लेकिन अब नहीं। मैं सच कह रहा हूँ। … अपने देसी लोगों का ग्रुप था। पहले तो मुझे पता नहीं चला था। दोस्ती हो गई और पता भी नहीं चला कि वह लोग कब मेरे ही नाम से धंधा करने लगे थे। मुझे लगा था कि उससे बाहर निकलना आसान होगा … पर नहीं। यह लोग मुझे छोड़ नहीं रहे ”…
अचानक से उसने महक का हाथ पकड़ लिया, “… वे मुझे मार देंगे! प्लीज…सिस्टर…”
महक पहले तो घबरा गई लेकिन फिर धीरे से अपना हाथ छुड़वा लिया। करन ने भी इस समय कोई जोर जबरदस्ती नहीं की और इशारों-इशारों में माफी माँगते हुए हाथ जोड़ दिए।
महक ने मुस्कराने का प्रयास किया। नीना भी अब कहीं थोड़ा आश्वस्त थी।
“नहीं … नहीं तुम्हें कुछ नहीं होगा। हम तुम्हारी मदद के लिए पुलिस को फोन करते हैं।”
पुलीस का नाम सुनते ही करन घबरा गया।
“पुलिस नहीं! बिल्कुल नहीं! वे पूछेंगे… मैं अब ठीक हूँ… जा सकता हूँ…”
तो महक बोल पड़ी, “लेकिन पुलिस आपकी मदद करेगी।”
करन ‘नहीं’ कहते हुए किसी तरह धीरे धीरे खड़े होने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे चक्कर आने लगे। वह वापस सोफे पर बैठ गया।
उसकी हालत को देख कर नीना को उस पर तरस आने लगा।
“… मेरा ख्याल है कि तुम अभी यहीं रुको – क्या पता वह लोग शायद अभी भी बाहर हों।”
“…और मेरे भैया भी आ रहे हैं… वह भी आपको हेल्प कर देगें।” महक को भी अब डर नहीं लग रहा था।
तभी घड़ी ने नौ के घंटे बजाए। यानि एक घंटा बीत निकल चुका था और अभी तक आर्ची नहीं आया था।
चूँकि स्थिती सामान्य सी हो रही थी, महक ने धीरे से नीना को कहा,“… शायद भैया की ट्रेन छूट चुकी है। हो सकता है अब वह सुबह ही आयेंगे।”
नीना ने उसे फोन कर पता लगाने को कहा।
फोन अभी भी करन के पैरों के पास ही नीचे पड़ा हुआ था। महक ने फोन को देखा, उठाने के लिए बढ़ी पर, फिर से डर गई और मदद के लिए नीना को देखने लगी।
करन ने स्थिति को समझा। उसे अब राहत थी तो बात समझ कर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आ गई। उसने स्वयम् झुक कर फोन उठाया और महक को दिया।
महक भी हल्के से हँस पड़ी ।
माहौल में हल्कापन आ गया।
महक कुछ देर तक फोन करती रही लेकिन दूसरी तरफ रिंग बजती रही। नीना परेशान भी हो रही थी लेकिन महक ने उसे याद दिलाया कि पहले भी तो कई बार भैया का फोन यूँ ही बजता रहता था और बाद में वह सॉरी के संदेश भेजते थकते नहीं थे।
महक ने माँ को तसल्ली दी कि भैया या तो देर रात आ जायेगे, नहीं तो सुबह सबेरे पहुँच जाएंगे।
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करन मुँह-हाथ धोकर अब बेहतर महसूस कर रहा था। नीना ने उसके लिए चाय बनायी और कुछ खाने को भी दिया।
बातों बातों में पता चला कि करन के पिता अव्वल दर्ज़े के शराबी थे। वह उसकी माँ के साथ हर तरह का अत्याचार करते थे। जब करन 12 साल का था तब उसकी माँ की मौत हो गई थी। फिर दो सालों के बाद उसके पिता की भी मौत हो गई थी।
नीना को उस पर तरस आने लगा। वह उसका दुःख समझ रही थी।
करन कह रहा था, “… बाप तो कभी था ही नहीं। माँ ने हमेशा मेरे साथ रहने का वादा किया था लेकिन उसने वह वायदा कहाँ निभाया। एक दिन मैं स्कूल से घर आया तो वह जा चुकी थी।”
करन ने अपने वॉलेट से अपनी मां की तस्वीर नीना को दिखायी। महक भी अब सहज होकर तस्वीर देख रही थी।
माँ की तस्वीर दिखाते हुए करन काफी भावुक भी हो गया था। भरे हुए गले से कहा, “मैं एक लेखक बनना चाहता था लेकिन …”
नीना को उसकी दशा देखकर बहुत दुख हो रहा था। उस अनजान लड़के के लिए उसे पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था कि किसी भी तरह इसको दुनिया भर की बुराइयों से बचा ले।
उसे उत्साहित करते हुए कहने लगी, “वह तो तुम अभी भी बन सकते हो। मेरा बेटा तुम्हारी मदद करेगा। वह ले जायेगा तुम्हें पुलिस के पास। देखो जीवन में इस घटना को एक क्रॉस रोड की तरह लो। मुझे यकीन है कि तुम सही रास्ते पर चल निकले हो। भगवान तुम्हें हिम्मत देगें, सही रास्ता भी दिखायेगें। बस हिम्मत नहीं हारना। अपने पर विश्वास रखो… हाँ बेटा तुम यह कर सकते हो।”
नीना के मुँह से अपने लिए बेटा सुनकर करन का मन और भर आया। वह उस प्यार, स्नेह के सामने अभिभूत हो गया, “आपको यह घिसी पिटी पुरानी बात लगेगी जो मैं दोहरा रहा हूँ लेकिन यह वाकई सच है कि माँ भगवान का रूप होती हैं। मैं खुद यह देख पा रहा हूँ। आपने मेरी सहायता की, मुझ पर विश्वास किया है, मैं …मैं वादा करता हूँ कि एक दिन मैं लेखक बन कर अपना बड़ा नाम करुँगा और तब आपसे मिलने आऊँगा। वादा…”
नीना ने मुस्कराते हुए सिर हिलाया। प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा।
माहौल सामान्य सा हो गया था।
घड़ी ने दस बजा दिए थे।
महक इस बीच आर्ची का फोन ट्राई करती रही लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिल रहा था। अब माँ बेटी दोनों को ही चिंता हो रही थी कि आखिर आर्ची कहाँ रह गया और फोन भी नहीं उठा रहा है।
उनको चिंतित देख कर करन ने कारण जानना चाहा। नीना ने आर्ची के बारे में बताया और साथ ही यह भी कि जब वह घर में घुसा था तो उनको यही लगा था कि आर्ची ही दरवाजा खटखटा रहा है।
करन को समझ आ रहा था कि इस समय उसका शरणदाता खुद बहुत परेशान है। उसने एक बार फिर अपने व्यवहार की माफी मांगी और पूछा कि अगर वह किसी तरह से मदद कर पाए।
माँ बेटी को यूँ परेशान देख कर उसे खुद भी समझ नहीं आ रहा था कि वह परिवार की कैसे मदद करे। फिर सोचा कि उसकी वजह से इन लोगों को और परेशानी न हो तो अच्छा रहेगा कि वह अब यहाँ से चला जाए क्योंकि अब वह काफी बेहतर भी महसूस कर रहा है। उसने जाने की बात की तो नीना ने उसे यूँ अकेले बाहर निकलने से रोका, “बेटा, यूँ तो मेन सड़क पास ही है लेकिन यह जगह भी खासी सूनसान है। यहाँ घरों के बीच बहुत दूरी भी है और मेन सड़क तक पहुँचने तक आसपास बड़ी बड़ी झाड़ियाँ भी है। क्या पता वह लोग अभी भी कहीं छुपे हों।”
उधर महक को इस अजनबी करन का घर पर यूँ रुके रहना ठीक नहीं लग रहा था। वह माँ को थोड़ा किनारे पर ले गई,
“माँ! इसे जाने दो—यह एक ड्रग डीलर रहा है …”
“हां, लेकिन अब तो नहीं है और वह इस बात को समझ भी गया है।एक अच्छा लड़का है, गलत लोगों में फंस गया था।” नीना ने महक को समझाने की कोशिश की।
“लेकिन माँ, हमें इसके पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए। आप इसे यहाँ से जाने दो।”
करन को उन दोनों की बातें अस्पष्ट रुप से सुनाई दे रही थी । वह समझ गया था कि महक को उस पर विश्वास नहीं हो रहा। तो बोल पड़ा, “मैं आप लोगों के लिए कोई परेशानी नहीं चाहता, मैं निकलता हूँ।”
लेकिन नीना ने उसे बड़े ही प्यार से कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है और वह उसके बेटे के आने तक रुका रहे।
वैसे एक ओर तो नीना को करन पर तरस आ रहा था तो वहीं दूसरी ओर कहीं महक की बात भी उसे ठीक लग रही थी। यूँ सब पर विश्वास कर लेना भी तो ठीक नहीं है।
‘लोगों का क्या पता। कितने ही किस्से सुनने में आते हैं। ठीक ही है, इस लड़के को चला ही जाना चाहिए। देर काफी हो चुकी है तो इसे कुछ खाना खिला देती हूँ।’ मन ही मन नीना सोच रही थी।
“… तुम मेरे बेटे जैसे हो। ऐसा है, मैं खाना गर्म करती हूँ तो खा कर चले जाना। हो सकता है तब तक आर्ची भी आ जाये तो तब सोच लेना क्या करना है। तब चाहो तो सुबह चले जाना।” नीना ने कहा और फिर महक को आर्ची के दोस्त सिड को फोन करके उसका पता करने के लिए कहा।
लेकिन तभी महक की सहेली का फोन आ गया।
“… माँ अभी दो मिनट में सिड को फोन करती हूँ।” महक फोन लिए अपने कमरे में चली गई।
“दो मिनट… समझो, कम से कम पन्द्रह मिनट गए।” नीना ने हँसते हुए चाय के बर्तन उठाये।
“… बेटा आप कोई मैंगजीन देखो तब तक, मैं खाना गर्म कर लेती हूँ।” कहते हुए नीना भी अन्दर रसोई की तरफ चली गई।
करन ने घड़ी देखी तो अब 10 बजकर बीस मिनट हो चुके थे। उसने अपना मन बना लिया था जाने का।
अन्दर कमरे से अपनी सहेली से बात करते हुए फोन पर महक की आवाज सुनाई दे रही थी …
“यस, भैया खास मेरे जन्मदिन के लिए आ रहे हैं। ….सो एक्साइटेड। …नहीं …नहीं…केक तो कल मैं खुद बनाउँगी। भैया को मेरे हाथ का बना केक पसंद है… आँ ….अभी सोचा नहीं…” और कुछ ही पल में उनकी बातचीत का रुख बदल गया था। कभी धीरे तो कभी चुहुलबाजी वाले टोन में उनकी बातचीत चल रही थी। और इन सब के बीच कभी बेबाक हँसी और खिलखिलाकर की आवाजें बाहर आ रही थीं।
करन ने अब तक पक्का सोच लिया था कि उसे क्या करना है। उसने अपना बटुआ निकाला लेकिन उसमें कुछ भी नहीं था। फिर बैग में देखा तो उसमें कुछ चॉकलेट और गणेशकी एक छोटी सी प्रतिमा थी। कमरे में कोने में गणेश की प्रतिमा को देखकर सोचा कि यह छोटी सी मूर्ति महक के लिए एक परफेक्ट बर्थडे गिफ्ट रहेगी। चाहे यह लोग क्रिस्चियन हैं पर आंटी तो हिन्दू हैं और यह इस मूर्ति को कहीं भी रख लेगें। उसे सम्मान भी देगें।
फोन पर महक अभी भी बातों में मग्न थी और किचन से भी बर्तनों की आवाजें आ रही थी। करन ने जल्दी से एक पेन और पेपर निकाला, जल्दी जल्दी एक नोट लिखा।
कॉफी टेबल पर उस नोट के साथ वह मूर्ति और चॉकलेट रक्खे और जल्दी से दबे पाँव उठ कर दरवाजा खोला। एक पल को ठिठक गया। ‘यूँ बिना बताये जाना क्या ठीक होगा?’ …
फिर एक बार उस कमरे को आँख भर कर देखा जहाँ उसे आश्रय मिला। मन ही मन माँ बेटी को धन्यवाद देते हुए धीरे से अपने पीछे दरवाजा बंद करके निकल गया। ज़ल्दबाज़ी में इस बात की ओर उसका ध्यान नहीं गया कि उसका बैग और बटुआ तो वहीं घर में रह गया है।
इधर कुछ देर में जब नीना वापस लॉजरूम में आई तो करन को वहाँ न पाकर इधर उधर देखने लगी। तभी टेबल पर गणेश की एक छोटी सी मूर्ति और चॉकलेट का पैकट देख कर हैरान रह गई।
‘यह कहाँ से आये? आर्ची आ गया क्या?’ बुदबुदाते हुए वह मूर्ति उठाई।
“अरे आर्ची कब आ गए?…”
हैरानी से नीना ने आवाज लगाई और इधर उधर देखा कि आखिर कहाँ है यह दोनों।
उधर महक अभी भी फोन पर अपनी सहेली से बातें करने में मस्त थी। माँ की आवाज भी उसने नहीं सुनी थी।
नीना ने नज़र टेबल पर मूर्ति के साथ पड़े हुए कागज पर भी पड़ी। वहीं साथ ही करन का वॉलेट और किनारे में बैग भी पड़ा था ।
‘कही़ बाहर चले गए क्या’, असमंजस की स्थिति में, नीना वह कागज उठा लिया और पढ़ने लगी। पढ़ते पढ़ते उसके चेहरे पर मुस्कराहट आती जा रही थी।
लेकिन कुछ ही देर में धीरे धीरे उसके चेहरे का रंग बदलता जा रहा था और फिर उसके मुँह से एक जोर की चीख निकली। अपने को संभालने की कोशिश करते करते वह एक कटे हुए वृक्ष की तरह सोफे पर गिर पड़ी।
माँ की चीख सुनते ही महक दौड़ कर बाहर लॉज रूम में आई। सोफे पर नीना हाथ में एक नोट लिए स्तब्ध सी बैठी देखा।
“माँ! माँ! …माँ! …क्या हुआ है?
मदद के लिए इधर उधर देखने पर वह अजनबी भी नहीं दिखा।
“माँ!, वह कहाँ गया? वह करन… माँ …” महक माँ को झकझोर रही थी और नीना हतप्रभ सी फटी आँखों से जैसे किसी शून्य को ताक रही थी। महक को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है। वह सहायता के लिए उस अजनबी को पुकारने लगी…
“अरे आप कहाँ हो… करन… करन भैया… माँ…”
बदहवास सी स्थिति में वह दौड़ कर माँ के लिए पानी लायी पर नीना तो जैसे पत्थर सी हो गई थी।
माँ को यूँ देख कर उसको रोना आने लगा था।
“माँ वह लड़का कहाँ चला गया—वह करन भैया … माँ क्या हुआ है? …”
महक माँ को बार बार झकझोक रही थी और नीना पत्थर बनी अब उस कागज के टुकड़े को देख रही थी। रुआंसी सी हालत में महक का ध्यान नीना के हाथ में उस नोट पर गया।
बिजली की तरह उसके दिमाग में कोंधा कि इसी में कुछ है। उसने एक झटके में माँ से वह नोट लगभग छीना और पढ़ने लगी।
‘आंटी और महक, आपने मुझ अनजान पर विश्वास किया और इतना प्यार दिया,
उसको मैं जीवन भर नहीं उतार पाऊँगा। मैं जा रहा हूँ । महक, मेरे पास तुम्हें देने के लिए
कुछ भी नहीं है, पर यह छोटी सी गणेशकी प्रतिमा और चाकलेट तुम्हारे जन्मदिन
के लिए छोड़ रहा हूँ। मैंने सुन लिया है कि कल तुम्हारा जन्मदिन है।’
महक की नजर अब उस मूर्ति पर गई। एक और हैरानी हुई तो वहीं गिफ्टस् देख कर अपने आप पर लाड़ भी आ गया।
“क्या बात है माँ। नाइस” और खुशी खुशी उस नोट को फिर आगे पढ़ने लगी…
‘मैं वादा करता हूं, जब मैं लेखक बनूंगा, आप सभी के लिए एक अच्छी सी, कोई बड़ी सी गिफ्ट लाउँगा। वादा….पक्का वादा।’
महक को अब सारी बात समझ में आने लगी। माँ की हालत देख घबराहट से उसकी आँखों से जो गंगा जमुना बहने लग गई थी, उसे जल्दी जल्दी पोछा। उसे अपनी घबराहट और बदहवासी के कारण खुद पर गुस्सा आने लगा। वह कितनी बहादुर हो सकती है यह उसे कुछ ही घंटों के अन्दर जो कुछ हुआ था उससे समझ आ रहा था। लेकिन अब यह सारी बात जान कर जो तसल्ली हो रही थी उससे अब उसे हँसी भी आ रही थी। अपनी मन पसंदीदा गणेश जी की मूर्ति पाकर तो उस अजनबी करन भैया पर बड़ा प्यार भी आया। अपने भाग्य पर जैसे खुद ही इठलाने भी लगी।
“ओह, तो यह बात है। माँ… वह चला गया… इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है। आप ने तो मुझे डरा ही दिया… यस , यू वर राइट, वह एक अच्छा इन्सान था। कम ऑन माँ। इट इज ओके।”… महक माँ से कहते कहते नोट को आगे पढ़ने लगी।
‘वैसे मैंने आपको यह नहीं बताया था कि जब, वह गुंडे साथी मुझ पर वार
कर रहे थे तब कोई लड़का बीच बचाव करते बीच में आ गया था और उसे
वह छुरा लग गया था। मुझे नहीं लगता, कि वह बच पाया होगा।’
महक को अब और समझ में आया,
“तभी तो …सी, आई न्यू इट, माँ …तभी वह पुलिस से डर रहा था। चलो… अब तो वह चला ही गया।”
महक आगे पढ़ने लगी…
‘उन लोगों ने उसका बैग छीन लिया था। मैंने उस लड़के की मदद करना
चाही थी और उन लोगों से उसका बैग छीन लिया था। लेकिन तभी दूर से एक
गाड़ी आती दिखी थी। डर के मारे वह सब लड़के, सड़क के दूसरी तरफ
वाली झाड़ियों में भाग गए थे और मैं इस तरफ आपके घर की तरफ
भागा। पता नहीं उस लड़के को किसी ने देखा होगा कि नहीं।
यह गणेशकी मूर्ति और चॉकलेट उसी के बैग में थे।
आपके घर में तो इस मूर्ति की जगह बन जाएगी।’
“वॉट?” … असमंजस में महक ने माँ को देखा जो अभी भी उस मूर्ति को टकटकी लगाये देख रही थी। महक ने झपट कर मूर्ति उठाई तो उसके नीचे लगे स्टिकर पर नज़र गई।
‘हैपी बर्थडे माई सिस महक
लव यू
फ्राम आर्ची’
पलक झपकते ही महक को समझ में आ गया कि क्या कुछ हो चुका था।
वह चीत्कार उठी, “नहीं… वह मेरे आर्ची भैया थे! माँ … माँ … आर्ची भैया को … ।”
महक, उस गणेश जी की मूर्ति को कस कर पकड़े हुए थी ।
अपनी पीड़ा, और ग़ुस्से को जैसे वह उस मूर्ति पर ही उतारने लगी,
“… मेरे आर्ची भैया … उन्होंने मारा और आप बस बैठे रहे। वह यहाँ आया, चला गया… आपने कुछ नहीं किया… बुत बने देखते रहे … कुछ नहीं किया … उसे जाने दिया … ।”
तभी दरवाजे पर घंटी बजी । डरकर महक ने नीना को कस कर पकड़ लिया। कुछ देर के बाद
दरवाजे की घंटी फिर बजी। नीना अभी भी स्तब्ध सी हालत में थी। डर, पीड़ा और आक्रोश की कुछ ऐसी स्थिति थी कि सब कुछ जैसे एक शून्य हो गया था। नीना की आँखे फटी सी थी, उनमें आँसु भी नहीं थे।
‘भैया तो नहीं! … शायद … कहीं कुछ गलतफहमी हो रही है … माँ शायद भाई आ गए हैं ’ महक के दिमाग में बिजली की तेजी से कई संभावनाएं आने लगीं।
मां को देखा, वह तो जैसे पत्थर सी मूर्ति बनी हुई थी।
उधर दरवाजे पर घंटी लगातार बज रही थी।
किसी तरह हिम्मत बाँध कर महक ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर करन खड़ा था।
जल्दी जल्दी अपनी बात कहते हुए, बिना इधर उधर देखे वह अन्दर की तरफ कुछ ऐसे बढ़ता गया जैसे वह वह उसका अपना ही घर हो।
“बड़ी देर की खोलने में। एंड सॉरी… मैंने सोचा कि आप लोगों को परेशान न करूँ तो चुपके से निकल गया था पर जानता हूँ कि ऐसा नहीं करना चाहिए था।बताकर जाना चाहिए था।”
और फिर वह हँसते हुए बोला, “गलत किया था न, देखो, तभी भगवान ने मुझे वापस भेज दिया। मैं अपना बटुआ यहीं भूल गया था। वैसे तो खाली था लेकिन फिर भी…” टेबल से अपना बटुआ उठा कर जेब में रखते हुए जैसे ही उसकी नज़र नीना पर पड़ी, उस की बात मुँह में ही रह गई।
सोफे पर सामने अवाक् स्तब्ध बैठी नीना को देखते ही करन समझ गया कि कहीं कुछ ठीक नहीं है।
महक को देखा तो वह भी उसे कुछ अजीब सी नज़र से देख रही थी।
“क्या हुआ? सब ठीक है न महक, भाई का कुछ पता चला? …” चिन्तित होते हुए करन ने पूछा।
लेकिन अवाक् सी महक, कभी करन को तो कभी टेबल पर पड़ी गणेश जी की उस प्रतिमा को देख रही थी। मुँह पर जैसे ताला लग गया था।
अचानक, खुले दरवाजे से दिखाई दिया कि घर के बाहर एक पुलिस वैन आ कर रुकी है। दो ऑफीसरस् उसमें से तेजी से उतरे और अगले ही क्षण वह घर के दरवाजे पर खड़े थे।
…
-अनिता बरार