पागलपन
ऐसा भी मौसम होता है
नैन हँसें और मन रोता है
यादो की रिमझिम होती है
आँखो में सावन होता है
अपने गुलशन के ख़ारो से
बँधा हुआ दामन होता है
बीते दिन, गुज़रे लम्हों को
बुला रहा आँगन होता है
अंदर-अंदर आग लगे तो
लावे सा गुलशन होता है
तुमको न पाकर पाने का
कैसा पागलपन होता है
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-रेखा राजवंशी
