ख़लिश

इक ख़लिश सी हुई मेरे दिल में
कोई डूबा है आके साहिल में

शख़्स वो उठ गया अचानक से
जान डाली था जिसने महफ़िल में

रस्ते साफ़ थे, सफ़र आसाँ
ख़ार लेकिन छिपे थे मंज़िल में

देखकर उसको बरसो बाद यहाँ
आ पड़ी जान मेरी मुश्किल में

जल गए जाने कितने परवाने
शमअ बेख़ुद है अपनी झिलमिल में

मुझको मारा बहुत सलीक़े से
क्या नफ़ासत थी मेरे क़ातिल में

***

-रेखा राजवंशी

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