विस्मया : कुछ अनुत्तरित प्रश्न
१
फिर भोर में बज उठी वंशी की तान,
फिर चहक उठा चिड़ियों का मधुर गान।
फिर महक उठी ताज़ा फूलों से बगिया,
फिर साँसों में फूँक दिये नव-प्राण।
एक तेरी छुअन से क्या क्या हो जाता है?
२
होंठ तेरे ,
निगाहें तेरी,
ज़ुल्फ़ तेरी ,
बाँहें तेरी।
कैसे पूरी कायनात सिमट जाती है?
३
गीता में, कुरान में,
पूजा में, अज़ान में,
बाइबल में, गुरू ग्रंथ में,
हर धर्म में, हर पंथ में।
नींव तो तुम्हारी ही है, फिर इमारतों पर झगड़ा क्यों?
४
झरनों में, सागर में,
सितारों में, गागर में,
स्वर में, संगीत में,
काव्य में, हर गीत में।
सर्वत्र तुम्हीं तुम हो तो फिर “मैं” कहाँ से बोले?
५
सुकरात पर लांछन,
कबीर पर लांछन,
सीता पर, अहिल्या के
चीर पर लांछन।
मानव सत्य का स्वागत करना कब सीखेगा?
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–हरप्रीत सिंह पुरी