वो तुमसे कहेंगे कि

वो तुमसे कहेंगे कि
तुम्हारे सृजनात्मक सपनों के सतरंगी ताने बाने
खूबसूरत हैं
लेकिन
इन्हें भ्रष्ट वास्तविकता के वस्त्र पहनाओ,भाई।
हम निष्कलुष सौंदर्य को
सीधे सहने के अभ्यस्त नहीं हैं।
वो तुमसे कहेंगे कि
तुम्हारी दूरगामी दृष्टि
जो क्षितिज के भी पार चली जाती है,
और अनजाने नक्षत्रों से
सत्य का प्रकाश लेकर वापस आती है,
तुम्हारे विवेक को जगाती है,
इसके आलोक को थोड़ा मंद करो,भाई।
कहीं तुम्हारे नेत्रों का तीव्र प्रकाश
हम जन्मान्धों को दृष्टि न दे दे!
और हमें तुम्हारी गर्व से तनी गर्दन की
ईमानदार नसों को देख कर
अपने उस अस्तित्व पर
जो है ही नहीं,
शर्मिन्दा होना पड़े।
वो तुमसे कहेंगे कि
सीधे तनकर खड़े होना
और सूर्य को सहना
भद्दा लगता है।
घुटनों के बल रिरिया कर चलना
अपने आप में सच्चाई है।
वो तुमसे कहेंगे कि
सिर्फ़ पौरुष झूठ होता है।
सिर्फ़ समझौता सच होता है।
लेकिन तुम उनकी बातों का असर मत लेना दोस्त!
वो ऐसा इसलिये कहेंगे
क्योंकि
तुम्हारे यौवन और पौरुष की हुंकार सुनकर
उनके काँच के घर कांपने लगते हैं।
वो ऐसा इसलिये कहेंगे
क्योंकि
उन्होने सुकरात से भी ऐसा ही कहा था।
और उन्हे यह भ्रम है कि
उनके कहने से
या ज़हर देने से
सुकरात मर जाया करते हैं।
वो तुम्हे जल्द से जल्द बना देना चाहते हैं
एक पौरुषहीन बूढ़ा बैल।
क्या तुमने रंगे सियार वाली कहानी नहीं पढ़ी ?
उठो!
और तोड़ दो
नामर्दगी के इन सारे शीशों को।
खड़े हो जाओ तनकर
सूर्य की रोशनी में।
और महसूस करो
हाथों की ठोस सच्चाई में
आँखों के उन सपनों को
जो तुमने कभी देखे थे!
जो तुम अब देखते हो!
जो तुम कभी देखोगे!

***

हरप्रीत सिंह पुरी

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