एक वचन चाहिये

जीतने के लिये बस अगन चाहिए,
सोच को कर्म का एक वचन चाहिये।

उड़ सके ख्वाब बन के हक़ीक़त सभी,
हौसला और दिल में लगन चाहिए।

दंश आतंक का चुभ रहा अब हमें,
मूल से पाप का अब हनन चाहिये।

चुभ रही है मुझे दुश्मनी इस कदर,
प्रेम से तरबतर एक वसन चाहिए।

देख सकती नहीं सबको’लड़ते हुए,
देश को प्रेम का आचमन चाहिए।

“बन के’शिल्पी रचूँ एक भवन प्रेम का,
जिसमें खुशियों का बस अंजुमन चाहिए।
***

-डॉ शिप्रा शिल्पी

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