वैश्विक भगवान की खोज
नया ज़माना, नयी संस्कृति, नूतन है परिवेश
वैश्वीकरण के आँचल में पलता है देश- विदेश l
दुनिया के इस वैश्वीकरण में गाऊँ किसका गान
प्रभु प्रार्थना भी है अनूदित – कैसे करूँ मैं ध्यान
भाषाओँ का अद्भुत मिश्रण कैसे लूँ संज्ञान?
क्षमा करो प्रभु, कर पाऊँगा केवल तुम्हें प्रणाम l
खान-पान और रहन-सहन में पश्चिम का हुआ प्रवेश
कैसे रखूँ सुरक्षित अपनी संस्कृति का लौकिक निर्देश
पुस्तक को कीड़े चाट गये, संस्कृत का नहीं ज्ञान
अंग्रेजी का दामन पकड़ा जाने सकल जहान l
श्लोकों का अर्थ समझना है दुष्कर संग्राम
पंडित की वाणी भी लगती दिनचर्या का एक काम
टेलीविज़न के परदे पर प्रभु, तुम बन गये एक सितारा
धन अर्जन के निमित्त तुम्हारा होता है बँटवारा l
जगह नहीं है रखने की कमलनयन की मूर्ति
बहुमंजिले संकीर्ण फ्लैट में कैसे हो इच्छा पूर्ति
स्मार्टफ़ोन में रख ली है मैंने उनकी सुन्दर तस्वीर
और यदाकदा सुन लेता हूँ उन पर अर्पित संगीत l
बचपन बीता दिल्ली में, अध्ययन किया लन्दन में
शादी हो गई बीजिंग में और रहता हूँ सिडनी में
हिन्दी, इंग्लिश, मंदारिन का भँवर-जाल है आँगन में
बच्चा मेरा उलझ गया है उनके ही धागों में,
कैसे तुम्हें पुकारूँ भगवन भाषा के इस चक्कर में
स्वीकार करोगे मेरा अर्पण पता नहीं किस भाषा में l
पत्नी को कैसे बतलाऊँ अपने मन की उलझन
अभी समझना बाकी है उसके दिल की धड़कन l
विश्व नागरिक बनकर मैंने जीत लिया सारा संसार
वैश्विक रूप दिखाकर भगवन, कर दो एक अन्तिम उपकार !
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-कौशल किशोर श्रीवास्तव
