क्या आप कवि हैं?

 (व्यंग्य, परिहास)

मैंने पढी है एक कविता :
“वह दरवाजे से आयी, खिड़की से निकल गयी
बालों की सुगंध छोड़ती गयी
मेरी नासिका है व्यस्त, मस्तिष्क हुआ रिक्त
दिल में धड़कन हैं l”

मैं सोचता रहा
‘इस कविता का अर्थ? इसकी सार्थकता?’

सोचते-सोचते नींद आ गयी
तो स्वप्न में सुना :
“यह इक्कीसवीं सदी की कविता है
इसका अर्थ ‘गूगल’ के पास है
वही इस डिजिटल युग का शिक्षक है
अपने दिमाग को आराम दो
डिमेंशिया होने पर काम आयेगा l
तुम बीसवीं सदी के कंकाल हो
यदि हिम्मत है
तो ऐसी ही कविता लिखकर दिखाओ l”

शीघ्र ही मैंने लिख डाला :
“कुएँ में झाँकते ही
उसने देखी अपनी तस्वीर
साथ में कुछ सितारें भी थे
उसे लगा
जैसे अन्तरिक्ष में तैर रहा था
वह कूद पड़ा
जब जोर से चिल्लाया
तो पड़ोसियों ने आकर बचाया l”
मेरी कविता छप गयी है
यदि हिम्मत है तो इसका अर्थ बता
‘गूगल’ से पूछ या दिमाग से
मुझे जानने का उत्साह रहेगा l

अगले सप्ताह मैंने पढ़ा :
“तुमने मॉडर्न आर्ट्स देखे होंगे
उनमें अर्थ होता नहीं, ढूंढ़ना पड़ता है
आज की कविता असंख्य धागों में लिपटी
एक नारी के समान है
अर्थ उसके भीतर छिपा है
किन्तु नारी का वस्त्र-हरण अपराध है l
अर्थ की चिंता छोड़ो
कविता सुनो, ताली बजाओ
साहित्यकार कहलाओ
स्वयं पदक लो और मुझे भी लेने दो l”

मैंने अपने आप से कहा “एवमस्तु”
और मुस्कराते हुए
खोल डाली शराब की दूसरी बोतल !!


-कौशल किशोर श्रीवास्तव

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