विवाह

विवाह की वरमाला
मात्र पुष्पों का हार नहीं
यह जयमाला है
एक दूसरे की जय की
एक दूसरे को चुन लेने की
एक दूसरे के सम्मान की

विवाह का गठबंधन
मात्र दो दुपट्टों की गांठ नहीं
ये बंधन है
दो दिलों का,
दो आत्माओं का
प्रेम और सद्भावनाओं का

विवाह में पाणिग्रहण
मात्र दो हाथों का पकड़ना नहीं
ये संस्कार है
एक दूसरे को सौंप देने का
परस्पर उत्तरदायित्व के स्वीकार का
जीवन भर एक दूसरे के आधार का

विवाह के सात फेरे
मात्र आगे पीछे चल अग्नि भ्रमण नहीं
यह एक आरंभ है
साथ जीवन यात्रा का
मैं और तुम से ‘हम’ का
एक दूसरे के उत्थान का

पवित्र अग्नि को साक्षी मान किए
वो सात फेरे
सात कसमों के साथ
क्रोध की अपवित्र अग्नि में सब
क्यों होने लगते हैं भस्म फिर एक साथ

वे सुगंधित पुष्पों के हार
फांसी के फंदे से लगने लगते हैं
दो दुपट्टों के वो गठबंधन भी
जंजीर सी लगने लगते हैं
पद जो उठे थे एक साथ वही मार्ग बदलने लगते हैं

बंट जाते हैं फिर से
मैं और तुम में
‘हम’ छिन्न-भिन्न हो जाता है
अहंकार की दीवार के दोनों ओर
बस मैं ही मैं रह जाता है

एक प्रश्न मेरे मस्तिष्क में
जब-तब उभरकर आता है
अहंकार और क्रोध की अग्नि के समक्ष
क्या सब कुछ छोटा हो जाता है?
विवाह जैसा एक पवित्र बंधन भी
मात्र एक मज़ाक बन जाता है..

*****

-अदिति अरोरा

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