चलिए वसंत बन जाएं
ऋतुराज वसंत जब आता है
जीवन, जीवंत हो जाता है
प्रकृति के विराट आँचल पर
सौंदर्य विस्तार पा जाता है
अमराई से आती मधुर ध्वनि
गूँजता कोयल का कूजन
पल्लवित सुगंधित पुष्पों पर
करते भँवरे अपना गुँजन
मुसकुराती सरसों खेतों में
और हँसते पुष्करों में कमल
पतझड़ से नग्न हुए वृक्षों का
मधुमास कर देता श्रृंगार नवल
चलिए हम भी वसंत बन जाएं
एक अनंत विस्तार हम पा जाएं
ना रह जाए किसी भी हृदय में पतझड़
ऐसा कुछ हम कर जाएं
मधुरता मधुमास में जैसे
माधुर्य हमारे कंठ में हो
झर-झर झरने सा अनवरत
एक प्रेम प्रपात हृदय में हो
खिलें खुशियों के सुमन दिलों में
बहे स्नेह की सुगंध हवाओं में
करुणा जल कभी भी शुष्क ना हो
नेत्रों के इन दो जलाशयों में
जहाँ कहीं भी हो हमारी उपस्थिति
वसंत ऋतु सी वहाँ हो प्रतीति
चलो प्रेम पुंज बनकर जी लें हम
जब तक धरा पर हैं अतिथि हम
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-अदिति अरोरा