पापा
पापा, तुम हो मेरे जीवन की सबसे अद्भुत रेखा,
तुम्हारे आशीष ने लिखा मेरी किस्मत का लेखा।
तुम्हारे मार्गदर्शन और साथ से ही मैंने सीखा,
अपने सपनों को पंख देकर, उड़ने का तरीका।
तुम्हारी लगन और त्याग का ही है ये परिणाम,
जो मैं कर सकी हूं, अपने जीवन में कुछ काम।
तुम्हारी छत्रछाया में मिला था मुझे वो विश्वास,
जिसने भरे रखा मुझ में, सदा साहस और आस।
पापा, तुम ही हो मेरे जीवन का दीपक,
मेरा हर क्षण तुम्हारी रोशनी से है प्रकाशित।
तुम्हारे आशीर्वाद से ही है मेरा हर सपना साकार,
तुम्हारे बिना अधूरी है मेरे जीवन की हर एक बात।
पापा नहीं भुला पाऊंगी मैं तुम्हारे वो गूढ़ शब्द,
हौसला बढ़ा कर, जो कर देते थे मुझे निशब्द!
तुम हो ज्ञान, दान, प्रेम और विश्वास की खान,
क्यों नहीं है तुमको इस बात का जरा भी भान!
मां पापा, तुम दोनों ही हो प्रेम के वो सागर,
जिसमें भर भर ले जाती हूं मैं अपना गागर ,
दिए है, तुम दोनों ने वो संस्कार,
कि राह न भटकूंगी कभी,
देखकर कहीं ठंडी छाया मैं ना अटकूंगी कभी।
मैं अथक चलती रहूंगी,
लक्ष्य की प्राप्ति तक,
इन सांसों की समाप्ति तक!
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-प्रतिमा सिंह