पापा की यादें

पापा याद तुम्हारी आती है,
आंखों में नमी भर जाती है,
बचपन की वो मीठी यादें,
वो खेल खिलौने और फरियादें !
वो भाइयों से लड़ना झगड़ना मेरा ,
वो रो रो कर उन्हें डांट खिलवाना मेरा, लड़ तो लूंगी उनसे अब भी मैं ,
पर अब कौन सुनेगा रोना मेरा?
कैसे आ पाओगे अब डांटने उन्हें ?
कौन आएगा अब मुझे मनाने ?
पापा याद तुम्हारी आती है !
आंखों में नमी भर जाती है !

वो तुम्हारा घोड़ा बनना, और मुझे जहाज बनाना,
खुद कूद कूद कर मुझे उड़ाना।

वो कंधों पर अपने मुझको बिठाना,
और अपने पैरों से मुझे चलाना।
अपनी थाली से बिन भूले, वो पहला निवाला मुझे खिलाना ।
पकवान बहुत ही मिलते हैं अब,
पकवान बहुत ही मिलते हैं अब,
पर अब वह पहला निवाला मुझे मिलेगा कैसे ?
पापा याद तुम्हारी आती है !
आंखों में नमी भर जाती है !

इम्तिहान जब मेरा होता,
मेरी अलार्म घड़ी तुम बन जाते थे,
जब जिस समय कहती मैं,
तुम तब तब मुझे जगाते थे ,
रिजल्ट जब मेरा आना होता,
परेशान तुम हो जाते थे !
अंक मेरे देखकर,
मुझसे ज्यादा खुश तुम हो जाते थे।
घूम घूम कर परिणाम मेरा गर्व से सब को बताते थे।
इम्तिहान तो आज भी, देती हूं हर पल पापा,

इम्तिहान तो आज भी, मैं देती हूं हर पल पापा,
पर अब इतना गर्व किसे होगा मुझ पर, इतना गर्व किसे होगा मुझ पर?
पापा याद तुम्हारी आती है आंखों में नमी भर जाती है।

*****

-प्रतिमा सिंह

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