क्या खोया क्या पाया
माँ के गर्भ की सुरक्षा खोई
तो इस दुनिया में जीने का
अवसर पाया।
बचपन का अल्हड़पन
और बेफिक्री खोई
तो जवानी में कदम रखने
का अहसास पाया।
देश खोया,
अपनी धरती की गंध खोई
तो विदेश में
अपने पंख फैलाने का मौका पाया।
जन्मभूमि खोई तो कर्मभूमि पाई
कर्मभूमि ने सिखाया
जन्मभूमि की गहराइयों को
मापने का अन्दाज।
कुछ खोने से उसकी महत्ता का ज्ञान हुआ
कुछ पाने से उसकी
प्रासंगिता का आभास हुआ।
अभी तो इस खोने और पाने
के सिलसिले का हिसाब-किताब
लगाना शुरू ही किया है।
अभी तो बहुत कुछ
खोने और पाने के इस सिलसिले में
अपना ध्यान लगाए रखने का इरादा है।
पर आखिर क्यों
ताकि न तो कुछ खोने का गम हो
और ना ही कुछ पाने का अभिमान।
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-पुष्पा भारद्वाज-वुड