स्वप्नांत
कल रात युगों के बाद स्वप्न फिर देखा था मैंने तेरा
सुरभित कर गया जगत को यूँ चंदन से शीतल प्यार तेरा
मेरी शर्मीली आंखें तेरी बाँहों में यूँ झूल गई
सर से चुनरी ऐसी ढलकी तन मन की सुध मैं भूल गयी
फिर हुआ समर्पित ह्रदय समाया रग रग में जादू तेरा
सुरभित कर गया जगत को यूँ चंदन से शीतल प्यार तेरा
राधा का प्रेम प्रेरणा था और त्याग तपस्या सीता की
पावन इतना संबंध हमारा याद दिलाता गीता की
तू ईष्टदेव बन गया और मंदिर था वो आँगन तेरा
सुरभित कर गया जगत को यूँ चंदन से शीतल प्यार तेरा
शहनाई के स्वर में बंधते देखा था दुलहन का श्रृंगार
फिर देहली रही कुँआरी ज्यों लुट जाये बागों से बहार
लब तक आने से पहले ही छूट जाएं हाथों से शराब
वह कैसा था संगीत रुलाया जिसने हमको बार बार
तू बना रहा अनभिज्ञ वहाँ था भाग्य यही तेरा मेरा
सुरभित कर गया जगत को यह चंदन से शीतल प्यार तेरा
छोटी दिन और लंबी रातें सब याद तुझे आते होंगे
पैरों में पड़ी बिवाई के वो दर्द सताते भी होंगे
और मैं उदास होठों ने अपना गीत सुनाती आयी हूँ
सपनों से तुम परित्यक्त न हो मैं स्वप्न जगाती आयी हूँ
जग कर मैंने जग देख लिया अब सोने की आज्ञा दे दो
संभव है आज उजागर सपनों में हो जाएं स्वप्न मेरा
सुरभित कर गया जगत को यों चंदन से शीतल प्यार मेरा
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शैलजा चतुर्वेदी
