समर्पित अहसास

हैं बहुत ही खास कुछ अहसास मेरे पास
कर रही हूं आज वो तुमको समर्पित।

मुट्ठियों में हूं सहेजे बालपन की गिट्टियां
भेज न पाई कभी जो प्रेम की कुछ चिट्ठियां
और अंतस में दबी-सी रह गई जो आस।

एक टुकड़ा चांद का जो मुझसे बतियाता रहा
खुशबुओं का काफिला मदमस्त, महकाता रहा
और हैं कुछ पल कुंआरे, अनछुए मधुमास।

एक आवारा-सा बादल आंख में ठहरा रहा
इक अधूरा ख्वाब जिस पर नींद का पहरा रहा
नींद टूटी पर नहीं टूटा, रहा बिंदास।

और हैं आहत हुए संघर्ष के कुछ पल
बीत कर भी बीत न पाए जो ऐसे कल
ठोकरें खाकर हुआ मजबूत जो विश्वास।

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– अलका सिन्हा

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