बीते ऐसे दिन

बीते ऐसे दिन बहुतेरे।
बीते दिन बीती रातों में,
सुधियों के बढ़ते से घेरे।
बीते ऐसे दिन बहुतेरे॥

बचपन के सुन्दर सपनों में
छिपा हुआ सुखमय संसार।
सहजप्राप्य अभिलाषाओं में
भरा हुआ सुख-चैन अपार॥

सब थे अपने, सुन्दर सपने
जागा करते साँझ-सवेरे ।
बीते ऐसे दिन बहुतेरे॥

कुछ उजला और कुछ अँधियारा,
सन्ध्या का धूमिल गलियारा।
खोज रही थी मेरी आँखें
दो हाथों का सबल सहारा॥
भावों से भीगे-भीगे से
कुछ पल तेरे, कुछ पल मेरे॥
बीते ऐसे दिन बहुतेरे।

जीवन ने निज वरदहस्त से
मुझपर कितना कुछ बरसाया।
सुख से घिरी रही, पर मन में
यह कैसी उदास सी छाया?

सतरंगों से सजी अल्पना
पर किसने ये रंग बिखेरे?
बीते ऐसे दिन बहुतेरे।

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-आशा बर्मन

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