यादों का वसंत (चोका)

जब भी मेरे
मन उपवन में
उतर आता
तुम्हारी स्मृतियों का
मोही वसंत
ढुलक जाता प्यार
मेरी कोरों से
नेह की बूँद बन
महक जाता
है मेरा रोम-रोम
अहसासों की
संदली ख़ुशबू से
उर कमल
पर तिर आते हो
ओस कण से
दहक उठते हैं
रक्ति म गाल
तुम्हारी स्मृतियों से
अजाने सुर
करते हैं झंकृत
हृदय वीणा
मदमाता मन
थिरक उठे
अचीनी थाप पर
हिय तल पे
बोया था कभी रिश्ता
उग आया है
फूटी आई हैं प्रीत
की स्वर्णिम पत्तियाँ।

*****

-कृष्णा वर्मा

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