ताँका
तिरा संदेह
अपाहिज है वक़्त
काँप रही हैं
विश्वास की मीनारें
दूरी बनी इलाज।
बाँधे घुँघरू
मलय पवन ने
होंठों पे राग
मेघों ने ढोल पीटे
बुँदियों की बारात
बाँसों के वन
जब बजी बाँसुरी
पगला मन
प्रीतम की यादों में
रोया है घड़ी-घड़ी।
मंद बयार
बसंत का आभास
छलक रहा
चंद्रमा के घट से
निश्छल सा उजास।
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-कृष्णा वर्मा