तेरा जाना

किए जतन मन बहलाने को
मिलते नहीं बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुसकानें।

मन का शहर रहा करता था
जगमग प्रीतम तुमसे
बिखर गया सब टूट-टूट कर
चले गए तुम जबसे।

चुहल मरा भटकी अठखेली
गुमसुम हुई अकेली
हँसता-खिलता जीवन पल में
बन गया एक पहेली।

सिमट गया मन तुझ यादों संग
हृदय कहाँ फैलाऊँ
कहो तुम्हारे बिन कैसे
विस्तार नया मैं पाऊँ।

*****

-कृष्णा वर्मा

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