
स्वयंभू
मन में तुम्हारी प्रीत का हर शब्द गीत है,
तन में रमा है त्याग का वो पल पुनीत है,
जो आदि से ही उपजा स्वयंभू सुनीत है,
उस आदि प्रेम की ही हर ओर कीर्ति है।
हर फूल में, हर पात में, है प्यार महकता,
हर वृक्ष की हर डाल में रुनझुन संगीत है,
उत्तुंग शिखर मन में उपजाते भाव हैं,
आभास यही होता वहाँ शिव की मूर्ति है।
जो अटल है, अविनाशी है, आदि देव है,
जो सृजन है, संहारक भी अदम्य शक्ति है,
उस त्रिनेत्र देव शम्भु की महिमा महान है,
शत शत प्रणाम करता उन्हें मेरा गीत है।
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– भगवत शरण श्रीवास्तव ‘शरण’