मैं आया हूँ

कुछ मायूसों की बस्ती में
मैं ख़्वाब बेचने आया हूँ
उन मुर्दों का जो ज़िंदा हैं
मैं दिल बहलाने आया हूँ

बेनूर निगाहों की ख़ातिर
ले कर प्रकाश मैं आया हूँ
मैं वस्त्रहीन कंकालों की
ख़ातिर कुछ कपड़े लाया हूँ

चेहरे की चंद लकीरें जो
जीवनगाथा बतलाती हैं
उस गाथा का हो अंत सुखद
उम्मीद जगाने आया हूँ

मैं नाकामी के मरुथल में
एक बूँद ओस की बन कर के
ख़ुद को मिटवाने की ख़ातिर
ही अपने घर से आया हूँ

जहाँ धर्म ने बोई है नफ़रत
और लहू बहा है नदियों में
मैं घुस कर ऐसे दलदल में
एक पुष्प खिलाने आया हूँ

मैं गोवर्धन के पर्वत को
उँगली पे आज उठा लूँगा
शोषण से मुक्ति का ले कर
एक मंत्र बाण मैं आया हूँ

शेषनाग तुम मुझे बना
जीवन-सागर मंथन कर लो
अमृत को अपने पास रखो
मैं विष को चुराने आया हूँ

जब तक तुम सहते जाओ
ज़ुल्म करेगा ही ज़ुल्मी
मिल साथ उठो संघर्ष करो
हिम्मत जुटलाने आया हूँ

हो पार्थ तुम्हीं, तुम गुडाकेश
तुम को ही बाण चलने हैं
है कुरुक्षेत्र ये रणभूमि
मैं सारथी बन कर आया हूँ

ख़ुद ही सोचो क्या अच्छा है
ख़ुद ही सोचो क्या करना है
तुम चंद्रगुप्त मैं चाणक्य
ये बात बताने आया हूँ

इस गाथा का हो अंत सुखद
उम्मीद जगाने आया हूँ
हर गाथा का हो अंत सुखद
उम्मीद जगाने आया हूँ

*****

– अजय त्रिपाठी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »