जीवन

एक निरंतर खोज है जीवन
ये मत समझो बोझ है जीवन
उठ कर गिरना, गिर कर उठना
सुख और दुख का बोध है जीवन

किसी मोड़ पर हँसना होगा
कुछ राहों पर रोना होगा
है कठोरता पत्थर की या
है पानी की लोच ये जीवन

कितने लालच खींचें तुमको
मोह हज़ारों रोकें तुमको
इन सब से बच कर जो निकले
ऐसा सच्चा सोच है जीवन

काम क्रोध के बादल छाये
जब भी तेरा मन घबराये
सही राह पर चलता जाये
मरहम है और चोट है जीवन

उसने सबका काम सँवारा
फिर क्यों भटके तू आवारा
साहस कर के आज चला चल
रुकना कैसा, जोश है जीवन

*****

– अजय त्रिपाठी

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