खेल

क्या खेल चल रहा है
एकतरफ़ा चल रहा है
सदियों से चल रहा है
हम सबको छल रहा है

किस-किस की करें बात
सारी ग़म-ए-हयात
शतरंज की बिसात
बस खेल चल रहा है
एकतरफ़ा चल रहा है
सदियों से चल रहा है
हम सबको छल रहा है

साँसों का आना जाना
सपनों को यूँ सजाना
चाहत बड़ी बनाना
फिर गिर के बिखर जाना
माटी में समा जाना
ये कब से चल रहा है
क्या खेल चल रहा है

तुम सोचते हो कि तुम ही
वज़ीर-ए-रियासत हो
हैं हाथी ऊँट घोड़े
फिर तुम तो सलामत हो
ये धोखा चल रहा है
कोई चाल चल रहा है
एक खेल चल रहा है

प्यादों की कोई क़ीमत
तुम आँकते नहीं हो
अपने ही ग़रेबाँ में
तुम झाँकते नहीं हो
चेहरे का ये मुखौटा
हटता नहीं है तुम से
ज़हनों पे पड़ा पत्थर
उठता नहीं है तुम से
तुम्हें लगता है फिर भी चेहरे
पे नूर पल रहा है
क्या खेल चल रहा है

आइना भी तुम्हें अब तो
पहचानता नहीं है
अपना तुम्हें कोई भी
अब मानता नहीं है
तुम्हारी याद में कोई दिल
धड़का यहाँ नहीं है
तुम खो चुके हो मंज़िल
कोई पता नहीं है
तब भी तुम्हें ये भ्रम है
सब तुम से चल रहा है
क्या खेल चल रहा है

अंजाम अपना क्या है
हर शख़्स जानता है
अंदर की जो सदा है
उसे कब वो मानता है
मदहोश हो रहा है
किस रंग में ढल रहा है
क्या खेल चल रहा है
एकतरफ़ा चल रहा है
सदियों से चल रहा है
हम सबको छल रहा है

*****

– अजय त्रिपाठी

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