मुस्कुरा रहे हैं

तुम्हारे सज़दे में सर झुकाया
वो ज़िन्दगी को लुभा रहे हैं
हैं आँख नम दर्द से दिल है बोझिल
ये लब हैं जो मुस्कुरा रहे हैं ।।

न जीना-मरना है हाथ अपने
न हैं हमारे, हमारे सपने
खुली ही रहती है आँख अपनी
वो ख़्वाब ऐसा सजा रहे हैं ।।

तराश कर पत्थरों को हमने
है सीधा-सादा सा बुत बनाया
नज़र से बुत की नज़र मिला कर
ख़ुदा वो बुत को बना रहे हैं ।।

मेरी तमन्नाओं का समन्दर
दिल में हलचल मचा रहा है
उन्हीं की सूरत है आईने में
वो आईना जो दिखा रहे हैं।।

ये कैसी उल्फ़त ‘उदार’ दिल में
बयाँ न कर पाए हम ज़ुबाँ से
दबे-दबे से हैं राज़ इतने
जो हर किसी से छुपा रहे हैं।।

*****

– डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार’

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