
सुनो बारिश!!
सुनो बारिश….कुछ पूछना था तुमसे !
क्या नभ के वक्ष से निकली महज़ पानी की बूँद हो तुम?
या सागर के खारे पानी को सोखकर उसे अमृत जैसा मीठा बनाने वाली कोई जादूगरनी?
सच, कहाँ होता है हर किसी के वश में कड़वाहट को पीकर अमृत बरसाना !
सुना है महादेव को भी विष की कड़वाहट को गले में ही बांधे रखना पड़ा था,
उसे अमृत फिर भी ना बना पाए वो !
विस्मित है मेरा ये मन तुम्हारे इस हुनर पर,
बारिश ! कैसे कर लेती हो ये तुम?
क्या किसी छोटे, चंचल से शिशु का आह्लादित मन हो ?
जो तुम्हारे आने की आस में काग़ज़ की कश्ती बनाता जाता है,
या तुम्हारी राह में आँखें बिछाए किसी किसान की आँखों की नमी हो तुम ?
किसी नव विवाहित जोड़े के प्यार को भिगोने वाली सावन की पहली फुहार हो,
या किसी की अंतर्वेदना की वो ख़ामोश सी चीत्कार,
जो तुम्हारा बहाना बना आँखों की कोरों से चुपचाप बहा करती है ?
फूलों – कलियों – पेड़- पत्तियों में रंग भरने वाली अप्रतिम चित्रकार हो
या अपने आक्रोश में ग़रीबों की छतों को टपकानेवाली निष्ठुर आत्मा ?
पहाड़ों के छोटे छोटे झरनों को कलकलाती ठंडी सी बयार हो,
या उन्मुक्त वेग से नदियों का बांध तोड़ने वाली काली
या फिर मरु वासियों की आँखों का अपलक इंतजार ?
बारिश, कैसे समेटे रखती हो इतने रूप अपने अंदर ?
पता नहीं किस किस के लिए क्या क्या हो,
बस इतना पता है कि जब भी आती हो,
धुल जाता है ये मौसम, तन और मेरा मन !
बारिश … कुछ कहना था तुमसे !
अगली बार आना तो खूब जम कर बरसना,
अभी मन पर जमी कई परतें और उतारनी हैं !!
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– सोमा व्यास
एक नई ख़ूबसूरत व्याख्या के साथ बारिश को। अर्जित किया , पढ़कर आनंद आ गया । हार्दिक बधाई !